आजादी के आंदोलन में उस समय की युवा पीढ़ी की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्लाह खान जैसे युवाओं ने देश के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर दी थी। लेकिन आज की युवा पीढ़ी को न जाने किसकी नजर लग गई! दिल्ली हाइकोर्ट की जस्टिस प्रतिभा रानी ने एक मुकदमे के दौरान कहा था, ‘छात्रों में इन्फेक्शन फैल रहा है जिसे रोकने के लिए आॅपरेशन जरूरी है।’ यह टिप्पणी आज के युवाओं की दिशा और दशा दोनों बताने के लिए काफी है।
दरअसल, बात केवल युवाओं की नहीं, हम सभी की है। हम देश की बात करते हैं लेकिन यह कभी नहीं सोचते कि देश है क्या? केवल कागज पर बना एक मानचित्र अथवा धरती का एक अंश! जी नहीं, देश केवल भूगोल नहीं है, वह महज सीमा रेखा के भीतर सिमटा जमीन का टुकड़ा नहीं है। वह तो भूमि के उस टुकड़े पर रहने वालों की कर्मभूमि है, जन्मभूमि है, पालनहार है, उनकी आत्मा है। आज देश को जितना खतरा दूसरे मुल्कों से है उससे अधिक खतरा देश के भीतर के असामाजिक तत्त्वों से है जो देश को खोखला करने में लगे हैं।
इन दिनों स्वतंत्रता दिवस का मतलब ध्वजारोहण, एक दिन की छुट्टी और टीवी या एफएम पर दिन भर चलने वाले देशभक्ति के गीत! थोड़ी और देशभक्ति दिखानी हो तो फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया में देशभक्ति वाली दो-चार पोस्ट डाल दीं या अपनी ‘प्रोफाइल पिक’ में भारत का झंडा लगा लिया! लेकिन जब देश के लिए कुछ करने की बात आती है तो हम ट्रैफिक सिग्नल्स जैसे एक छोटे-से नियम का पालन भी नहीं करना चाहते क्योंकि हमारा एक- एक मिनट बहुत कीमती है।
गाड़ी को पार्क करना है तो अपनी सुविधा से करेंगे कहीं भी। कचरा फेंक देंगे चलती कार, बस या ट्रेन कहीं से भी। वह कहां गिरा हमें उससे मतलब नहीं है, बस हमारे आसपास सफाई होनी चाहिए! देश चाहे किसी भी विषय पर कोई कानून बना ले, हम कानून का ही सहारा लेकर और कुछ ‘ले-देकर’ बचते आए हैं और बचते रहेंगे क्योंकि देश प्रेम अपनी जगह है, हमारी सुविधाएं देश से ऊपर हैं! दरअसल, अपने हिंदुस्तान को सारे जहां से अच्छा हमें ही मिल कर बनाना होगा।
’दिलजीत कौर, बाबा फरीद कॉलेज, बठिंडा
