‘मित्रो, मैं देश की तस्वीर बदलने की हिम्मत रखता हूं। आपने उन्हें साठ बरस दिए, मुझे सिर्फ साठ महीने दीजिए। देश से भ्रष्टाचार मिटा दूंगा, कालेधन को सार्वजानिक कर दूंगा। काला धन आने से हर देशवासी के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख यों ही चले जाएंगे।’ जनता ने पहली बार एक ऐसी गर्जना सुनी, जिसे वह वर्षों से सुनना चाहती थी। इस सबके बीच भारतीय राजनीति के पटल पर एक ऐसे व्यक्ति का पदार्पण हुआ जिसने सीधे जनता की नब्ज को पकड़ा कि वह क्या सुनना चाहती है। अपनी हर चुनावी सभा में जनता ने जो सुनना चाहा, उसका इस शख्स ने उद्घोष किया। सत्ता में आने पर वादों के मुताबिक उसने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में (28 मई) कालेधन को लेकर एसआईटी का गठन किया गया। इसके नतीजे में पहली बार 672 लोगों के नाम बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए।

इसके बाद आठ नवंबर को ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के अंदाज में काले धन पर नोटबंदी का हमला हुआ। इसने आम जनता (जो अच्छे दिनों के मलबे के नीचे कराह रही थी) को स्तब्ध कर दिया। किसी ने खुल कर कहा, अब ब्लैक मनी वालों की खैर नहीं, तो किसी ने कहा कि यह महज चुनावी स्टंट है। लेकिन इसकी परिणति आज यह है कि बैंकों के आगे कभी न खत्म होने वाली कतार में खड़े लोगों का धैर्य जवाब दे रहा है। किसी ने सोचा भी नहीं होगा, 15 लाख रुपए खातों में आना तो दूर, छुट्टे पैसों की आफत आने वाली है। एक बार देश ने 1975 में विचारों पर आपातकाल देखा था तो इस बार क्रयशक्ति का आपातकाल देख रहा है।

बहरहाल, उम्मीदों का बांध अभी भी बना हुआ है। सरकार की पूरी कोशिश नोटबंदी के मुद्दे को भुनाने की है सवाल देशहित से जो जुड़ा है। पर अफसोस, इस कथित देशहित ने अब तक 64 से अधिक जिंदगियों को काल के गाल में धकेल दिया है। देश के रक्षामंत्री का बयान सुन लीजिए, ‘नोटबंदी से कश्मीर में पत्थरबाजी रुक गई है, हवाला कारोबार बंद हो चुके हैं।’ जो कश्मीर एक बुरहान वानी के मौत से उबल रहा था, सड़कों पर आजादी के नारे गूंज रहे थे, वहां आज भी खिड़कियों से खौफ झांक रहा है। आप अगर कहते हैं कि कश्मीर में पत्थरबाजी सिर्फ पैसों की देन है, तो खुद क्यों नहीं वहां पैसे खर्च करते हैं? आज भी भारत के पूर्वोत्तर में कई ऐसी जगहें हैं जहां बैंक नहीं हैं। वहां रिजर्व बैंक नकदी भेज पाने में सक्षम नहीं है। वहां का क्या होगा? क्या ये आपकी नीतियों की उलटबांसियां नहीं हैं? एक ऐसा वर्ग जो दिहाड़ी मजदूर है और उसकी जिंदगी की गाड़ी हर दिन की मजदूरी पर चलती है। आखिर, उसका क्या होगा? वह लाइन में लग कर नोट बदलवाए या मजदूरी करके दो जून की रोटी का इंतजाम करे?

आंकड़ों के मुताबिक इस साल एक अप्रैल से तीन अक्तूबर तक आयकर की जांच में 7,700 करोड़ का काला धन पाया गया। लेकिन हैरत की बात है कि इसमें कुल 408 करोड़ रुपए ही नकदी में बताए गए। सवाल है कि क्या नकदी की पाबंदी से काला धन आ जाएगा? नकदी के इस आपातकाल में कर्नाटक में भाजपा के एक पूर्व मंत्री ने अपनी बेटी की शादी में पैसों की गंगा बहा दी। क्या उसकी जांच नहीं होनी चाहिए? महाराष्ट्र में भाजपा के एक नेता की गाड़ी से लाखों रुपए पकड़े गए। क्या उससे सवालों का एक दौर नहीं होना चाहिए?
’माधव झा, नरेला, नई