देश की आजादी के समय अंग्रेजों ने हमारे लोकतंत्र अपनाने के फैसले पर चुटकी लेते हुए भविष्यवाणी की थी कि भिन्न-भिन्न जाति, धर्म, भाषा और नस्लों का विविधता में एकता वाला भारत खंडित हो जाएगा; जिस देश के महज बारह प्रतिशत लोग ‘साक्षर’ हैं, वह भला क्या लोकतंत्र चलाएगा! लेकिन भारत अपने साथ ही आजाद हुए पड़ोसी मुल्क के बरक्स एक मजबूत और स्वस्थ लोकतांत्रिक देश बन कर उभरा। आज जिस लोकतंत्र पर हमें गर्व है, उसमें सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान चुनाव आयोग का रहा है।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग की नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले सरकार से पूछा है कि चुनाव आयोग की नियुक्ति से जुड़े कानून अब तक क्यों नहीं बनाए गए! एक बार नियुक्त किए जा चुके चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया काफी जटिल है। अगर सरकार चुनाव आयुक्त को हटाने की ठान ही ले तो उसे महाभियोग का सहारा लेना पड़ेगा। चुनाव के दौरान चुनाव आयोग काफी शक्तिशाली हो सकता है।
इन्हीं अर्थों में कहा जाता है कि भारत में चुनाव आयोग शक्तिशाली और स्वतंत्र है। यों निष्पक्ष चुनाव कराना उसकी प्राथमिक जिम्मेवारी है। लेकिन आज चुनाव की निष्पक्षता पर ‘एग्जिट पोल’ एक बड़ा प्रश्न-चिह्न है! एग्जिट पोल निकालने का तरीका जो भी हो, इतिहास में चाहे जितनी बार भी एग्जिट पोल सफल या विफल हुआ हो, लेकिन एक बात समझ नहीं आती कि इसका औचित्य क्या है और इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध न लगाने के पीछे चुनाव आयोग की कौन-सी मजबूरी है!
हम जानते हैं कि भारत का मतदाता अपना वोट बर्बाद न करने की धारणा के साथ वोट देता है। वह आमतौर पर उसे ही वोट देना चाहता है जो उसे जीतता हुआ लगता है। ऐसे देश में चुनावों के वक्त आने वाला एग्जिट पोल क्या मतदाता को किसी खास पार्टी की तरफ मोड़ने का अनैतिक प्रयास नहीं करता है? क्या यह पेड न्यूज का मामला नहीं है? लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया एग्जिट पोल के नाम पर इससे खेलता है और मतदान से पहले ही परिणाम बता कर मतदाता के मन को बदलने का अनैतिक प्रयास करता है।
निष्पक्ष और गोपनीय मतदान संपन्न करवाना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है और इस धारणा की पुष्टि के लिए चुनाव आयोग को चाहिए कि एग्जिट पोल या चुनाव बाद होने वाले सर्वे आदि पर सार्वकालिक और पूर्णत: प्रतिबंध लगाए। चुनाव बाद आने वाले सर्वे पर भी प्रतिबंध इसलिए कि कहीं मतदान के बाद भी कई जगह पुनर्मतदान होते हैं या किसी अन्य राज्य में बाद में चुनाव होने होते हैं। जाहिर है, एक स्वच्छ और स्वस्थ लोकतंत्र को कायम रखने के लिए चुनाव आयोग को एक-एक वोट अक्षुण्ण रखने की दिशा में निरंतर प्रयासरत होना चाहिए।
’चंद्र प्रकाश चक्रवर्ती, मुखर्जी नगर, नई दिल्ली</p>