हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पाकिस्तान पर कांग्रेस के साथ मिल कर गुजरात चुनाव में दखलअंदाजी करने वाले आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि भारतीय नेताओं को अपनी घरेलू राजनीति में पाकिस्तान को नहीं घसीटना चाहिए और उन्हें ऐसे मनगढ़ंत षड्यंत्रों की हवा बनाने के बजाय अपने दम पर जीत हासिल करनी चाहिए। दरअसल, पाकिस्तान को जवाब शायद इसलिए देना पड़ा कि 2014 के आम चुनाव के बाद भारत में होने वाले लगभग सभी विधानसभा चुनाव में पाकिस्तान का नाम आना आम बात हो गई है। इसका फायदा सभी दल अपनी-अपनी सहूलियत से उठा रहे हैं।
कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब चुनाव में कहा था कि पाकिस्तान हमेशा पंजाब की धरती के इस्तेमाल की फिराक में रहता है और सरकार ढीली-ढाली आ जाए तो पंजाब के साथ पूरे हिंदुस्तान को उसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। इससे पहले उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान भी कानपुर रेल दुर्घटना के लिए पाकिस्तान पर अंगुली उठाई जा चुकी है। बिहार में विधानसभा चुनाव के दौरान भी अमित शाह ने रक्सौल की एक रैली में कहा था कि अगर गलती से भाजपा बिहार में हार गई तो जय-पराजय यहां होगी, लेकिन पटाखे पाकिस्तान में फूटेंगे!
पाकिस्तान के नाम का इस्तेमाल करने में कांग्रेस भी पीछे नहीं रही है। 2016 के असम विधानसभा चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि पाक को लेकर मोदी की नीति लचर है। राहुल गांधी ने 2014 में महाराष्ट्र चुनाव के दौरान डिंडोरी की रैली में कहा था कि मोदी ने सरकार में आने के बाद भारत को मजबूत बनाने और पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात कही थी, मगर आज पाक हमारे जवानों पर गोली चला रहा है। दरअसल, बंटवारे के बाद पैदा हुए राजनीतिक नफरत का इस्तेमाल कर दोनों ही देशों की पार्टियां अपने लिए मत जुटाने की कोशिश करती रहती हैं। इसलिए भारत के चुनावों में पाक का नाम का इस्तेमाल एक आम बात है। लेकिन सवाल है कि इससे देश और इसका मानस कैसा बनेगा!
’सौरभ बघेल, मथुरा