प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में कृषि मंत्रालय का नाम बदल कर ‘कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय’ रखने की घोषणा की है। ढाई दशक में तीन लाख से अधिक किसानों की आत्महत्या और कृषि संकट के मद्देनजर शायद यह घोषणा की गई है।
नई आर्थिक नीतियों के परिणामस्वरूप कृषि उपज के आयात से मात्रात्मक प्रतिबंध समाप्त करने, बीज, खाद, बिजली, पानी, कृषि उपकरण, कीटनाशक आदि के खर्च में वृद्धि और फसलों के वाजिब दाम न मिलने से कृषि संकट गहराया है। बैंकों से सभी को कर्ज न मिलने से अधिकतर कृषक साहूकारों से महंगा कर्ज लेने को अभिशप्त हैं।
कर्ज और ब्याज की समय पर अदायगी न किए जाने पर कई किसान अपने आजीविका के महत्त्वपूर्ण साझन ‘जमीन’ को बेचने और जीविकोपार्जन में अक्षम होने पर मजबूरी में आत्महत्या को विवश हुए हैं। बीजों के पेटेंट और नई फसल के लिए नए बीज की जरूरत के चलते बीटी कॉटन के उदाहरण से पूरा देश वाकिफ है जिसके चलते बड़े पैमाने पर विदर्भ में किसानों ने आत्महत्या की है।
इन नीतियों के चलते बड़े किसान मध्यम किसान, मध्यम किसान लघु व सीमांत किसान और लघु एवं सीमांत किसान कृषि मजदूर में तब्दील हो रहे हैं। मशीनीकरण से गांवों में रोजगारहीनता में वृद्धि हुई है और मजदूरी के लिए ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में पलायन बढ़ा है।
गौरतलब है कि रोजगारहीन विकास के चलते शहरों में भी रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं हैं और शहरों में पलायन से वहां की पहले से ही छिन्न-भिन्न व्यवस्थाओं पर और विपरीत प्रभाव पड़ा है। इन बेरोजगार युवाओं में एक ओर नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है जिससे पंजाब जैसे राज्य भी गहरे रूप से प्रभावित हैं तो दूसरी ओर अपराधों में वृद्धि हो रही है और अनैतिक व्यवसाय, आतंकी गतिविधियों में इस युवा पीढ़ी का दुरुपयोग भी बढ़ रहा है।
ऐसी स्थिति में सिर्फ मंत्रालय का नाम बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, आवश्यकता नीतियों में बुनियादी परिवर्तन करने की है, जिसकी नीयत लालकिले की प्राचीर के संबोधन में नहीं झलकती है।
जनता पार्टी की सरकार ने इसी तरह ‘परिवार नियोजन’ का नाम बदल कर ‘परिवार कल्याण’ कर दिया था पर नाम बदलने के लगभग चार दशक बाद भी परिवारों का कल्याण नहीं हो पाया है; आबादी बेतहाशा बढ़ी है और लिंगानुपात निराशाजनक है।
सुरेश उपाध्याय, गीतानगर, इंदौर
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