‘कुंठा का चेहरा’ (संपादकीय, 19 नवंबर) पढ़ा। इसमें वाजिब सवाल उठाए गए हैं और उपयोगी सलाह भी दिए गए हैं। दरअसल, उत्तर प्रदेश के एक सिंचाई विभाग के कनीय अभियंता की करतूत से लोग सकते में ही नहीं है, बल्कि गुस्से में भी हैं। एक शिक्षित और जिम्मेवार पदाधिकारी कैसे पचास से अधिक बच्चों का यौन शोषण करता रहा और उसके अश्लील वीडियो बना कर बेचता रहा।

पांच से सोलह साल के नाबालिग बच्चों को पैसे और मोबाइल का लालच देकर हैवानियत का खेल खेलता रहा। पॉक्सो के तहत जांच में यह पकड़ा गया। भोले-भाले सूरत वाले, शिक्षित, ऊंचा या उच्चवर्गीय रहन-सहन और हाई सोसाइटी में रहने वाले ऐसे लोगों पर शक होना चाहिए था, लेकिन हमारे समाज में लोग जल्दी भरोसा कर लेते हैं। जबकि ऐसे भेड़िए कहीं जंगल में नहीं, हमारे पड़ोस में ही रहते हैं। चिकनी-चुपड़ी बातें बना कर, हमदर्द बन कर किसी का सर्वस्व लूट सकते हैं। ऐसे चरित्रहीन लोगों की पहचान और उनका सामाजिक बहिष्कार जरूरी है।

विडंबना है कि अब कौन भरोसेमंद है और कौन नहीं, एक यक्ष प्रश्न बन गया है। अपने बच्चों, परिवार के दायरा सीमित लोगों के बीच रखने की जरूरत है। घर में बाहरी, संदिग्ध, चरित्रहीन लोगों से बचना ही हितकर होगा। अगर कोई मित्र, रिश्तेदार चरित्रहीन है और आपको पता है, तब अविलंब ऐसे व्यक्ति का त्याग कर दें। इसके लिए चाहे जो कीमत चुकानी पड़े।

कानून ऐसे दुष्कर्मियों के साथ कठोरतम व्यवहार करे, ताकि दूसरों के लिए भी नजीर बने। कई बार देखा गया है कि परिवार में कुछ दुष्कर्मी होते हैं, लेकिन उनके परिवार वाले ही इज्जत के नाम पर पर्दा डालते हैं। तब भला इस कोढ़ को कैसे खत्म करेंगे? भले ही परिवार में भाई, पुत्र, पिता ही क्यों न हो, घर के कमाऊ व्यक्ति ही क्यों न हों, उसका तुरंत तिरस्कार करें और लोगों को बचने की सलाह दें। ऐसे मानसिक दिवालिया लोगों से बचना मुश्किल है।

’प्रसिद्ध यादव, बाबूचक, पटना, बिहार