केंद्र सरकार ने हड़बड़ी दिखाते हुए जिस तरह से अचानक तीनों कृषि विधेयकों को पारित करा कर उन्हें कानूनी रूप दे दिया, उससे इन कानूनों को लेकर संदेह गहरा गया। किसानों को आज यही बात सबसे ज्यादा परेशान कर रही है कि आखिर क्यों सरकार ने इतनी जल्दबाजी में यह कदम उठाया। दरअसल, कृषि राज्य का विषय है। वह न तो केंद्रीय सूची में शामिल है और न समवर्ती सूची में शामिल है।
भारत की संघीय व्यवस्था के अंतर्गत सभी राज्य अपनी जमीनी स्थिति के अनुसार कृषि से संबंधित कानून बनाने के लिए स्वतंत्र और सक्षम हैं। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने संविधान की अवहेलना करते हुए कृषि से जुड़े तीन काले कानून बना दिए, जिसका विरोध देश भर के किसान कर रहे हैं। किसानों को आशंका है कि ये तीनों कानून कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए गए हैं। ये तीनों कानून सिर्फ किसान विरोधी ही नहीं, बल्कि आम जनता और उपभोक्ताओं के भी विरोधी हैं। क्योंकि जमाखोर और काला बाजारी करने वाले बड़े व्यापारी और कारपोरेट घराने सस्ते दामों पर कृषि उपज खरीद कर उन्हें अपने गोदामों और शीतगृहों में भर लेंगे।
इसके बाद उन जिंसों (वस्तुओं) का कृत्रिम अभाव पैदा कर मनचाहा मुनाफा कमाएंगे। आज जो लोग यह सोच रहे हैं कि किसान आंदोलन सिर्फ दो-तीन राज्यों के बड़े किसानों का आंदोलन है, उन्हें जब सौ रुपए किलो अनाज और दो सौ रुपए किलो दालें खरीदनी पड़ेंगी, तब लगेगा कि उन्होंने केंद्र सरकार के तीनों किसान विरोधी कानूनों का विरोध क्यों नहीं किया?
’प्रवीण मल्होत्रा, इंदौर</p>
जिद छोड़ें, बात करें
एक पखवाड़े से किसान आंदोलन चल रहा है। अधिकांश किसान हरियाणा और पंजाब से हैं। इनमें से अधिकतर को तीनों कृषि कानूनों की पेचीदगियां पता नहीं हैं। लोकसभा और राज्यसभा में कानून पारित करने के बाद भाजपा ने बिहार में चुनाव जीता, कई स्थानों पर उपचुनाव और राजस्थान में पंचायत चुनाव भी जीता। यह दशार्ता है कि इस आंदोलन में कुछ लोगों और दलों द्वारा किसानों को गुमराह किया गया है।
आंदोलन में अराजक तत्वों की घुसपैठ की खबरें भी आ रही हैं। हालांकि किसान संगठन पहले ही कह चुके हैं कि उनका आंदोलन जायज मांगों को लेकर है, इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। कोई भी राजनीतिक नेता मंच पर नहीं आएगा। यह बहुत अच्छी सोच है। लेकिन किसानों को भी अब जिद छोड़नी चाहिए और सरकार के साथ बातचीत करनी चाहिए। सरकार संशोधन करने के लिए सहमत है। सहमति और वार्ता को नाक का सवाल नहीं बनाना चाहिए। हठधर्मिता से कोई समाधान नहीं निकल सकता।
’नरेंद्र कुमार शर्मा, गांव भुजडू, मंडी