उपराष्ट्रपति ने संसद के शीतकालीन सत्र में हंगामे, शोर-शराबे और व्यवधान पर चिंता जाहिर करते हुए राजनीतिक दलों से कहा है कि वे अपने सांसदों के लिए एक आचार संहिता तैयार करें। उनकी चिंता जायज है क्योंकि संसद भारत के सवा सौ करोड़ लोगों की आवाज को स्वर देने का मंच है, लेकिन उसका बहुमूल्य समय प्रायोजित हंगामे की भेंट चढ़ जाता है। ऐसे में ब्रिटेन की तर्ज पर भारत में भी सांसदों के लिए आचरण संहिता बनाना समय की मांग है। गौरतलब है कि ब्रिटेन में नोलन समिति की सिफारिश के आधार पर हाउस ऑफ कॉमंस के सदस्यों के लिए आचरण संहिता बनाई गई है जिसमें कहा गया है कि संसद सदस्य हर समय खुद को इस तरह पेश करेंगे कि संसद की अखंडता और कार्यक्षमता में जनता का विश्वास बनाए रखने में मदद मिले। उसके बाद वहां संसदीय कामकाज में सुधार हुआ है।
भारत में 2012 से 2016 के दौरान पांच वर्षों में लोकसभा की सालाना औसतन 69 दिन बैठकें हुईं, जिनमें से औसतन 20 दिन सदन की कार्यवाही बाधित रही। जबकि राज्यसभा में 68 दिनों में से 21 दिन अवरोध/व्यवधान होने से बर्बाद हुए। यानी बैठकों की कुल संख्या में लोकसभा में 30 फीसद और राज्यसभा में 35 फीसद समय व्यवधान में बीत गया। हंगामों और गतिरोध के कारण लगातार संसद का बाधित होना हमारे लोकतंत्र को कमजोर बनाने जैसा है। सवाल है कि हंगामे और स्थायी गतिरोध से हम देश और दुनिया की नजरों में संसद की क्या छवि बना रहे हैं!
अन्य लोकतंत्रों की तुलना में भारतीय संसद की कम अवधि के लिए बैठकें होती हैं। ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमंस और हाउस ऑफ लॉर्ड्स हर वर्ष 150 से अधिक दिनों और अमेरिका में प्रतिनिधि सभा और सीनेट 133 दिनों के लिए मिलते हैं। जबकि भारत में लोकसभा में 1950 के दशक में जहां एक साल में औसतन 127 दिन कामकाज होता था वहीं आज इस कामकाज का औसत घटकर 73 दिन तक सिमट गया है और इसमें लगातार गिरावट का दौर जारी है।
संसद में बार-बार गतिरोध न हो और इसका कामकाज सुचारु रूप से चले इसके लिए संविधान में संशोधन कर यह अनिवार्य किया जाए कि लोकसभा में 120 दिन और राज्यसभा में साल में कम से कम 100 दिन कामकाज हो। इससे राजनीतिक दलों की जवाबदेही बनेगी। जब कामकाज के दिन तय हो जाएंगे तब सांसदों को बहस करनी ही होगी, आंकड़े जुटाने होंगे और अपने क्षेत्र की जनता को जवाब देना होगा।
जब से संसदीय कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू किया गया, तब से कुछ माननीयों ने इसे अपने क्षेत्र के लोगों, पार्टी और मीडिया के बीच सुर्खियां पाने का माध्यम बना लिया है। इस समस्या के निदान के लिए एक उपाय यह हो सकता है कि सदन की कार्यवाही के संपादित अंश दिखाए जाएं। साथ ही संसदीय नैतिकता और विशेषाधिकारों का वर्गीकरण करना चाहिए ताकि उनका उल्लंघन करने पर जांच सुनिश्चित की जा सके।
कैलाश एम बिश्नोई, नई दिल्ली</strong>
किसी भी मुद्दे या लेख पर अपनी राय हमें भेजें। हमारा पता है : ए-8, सेक्टर-7, नोएडा 201301, जिला : गौतमबुद्धनगर, उत्तर प्रदेश<br /> आप चाहें तो अपनी बात ईमेल के जरिए भी हम तक पहुंचा सकते हैं। आइडी है : chaupal.jansatta@expressindia.com