‘रोटी और फीस के लिए दो-दो हजार में बिक गए शहीदों के वीरता पदक समाचार’ पढ़ कर आंखें भर आईं। अदम्य साहस और वीरता से दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के फलस्वरूप मिले पदक अपने परिवार के पालन-पोषण एवं शिक्षा की खातिर बेचने की मजबूरी सैनिकों के दिलों पर वज्रपात सरीखी है। यह मजबूरी देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले जांबाजों के अरमानों की बलि है। पदक विजेता सैनिकों के परिवारवालों की माली हालत सुधारने के लिए सरकारों के साथ ही समाजसेवी संस्थाओं को भी अविलंब आगे आने की आवश्यकता है।
पारस एफ खेमसरा, तिरुपति विहार, सांवेर, इंदौर

स्वच्छता का सपना: पिछले दिनों देश ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 71वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। वैसे असल में साफ-सुथरा समाज और देश का निर्माण ही गांधीजी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी क्योंकि उनका पूरा जीवन स्वच्छता के प्रति आग्रह से जुड़ा रहा है। उनका मानना था कि एक राष्ट्र के तौर पर उदय के लिए हमें राजनीतिक आजादी नहीं बल्कि गंदगी और बीमारियों से स्वतंत्रता चाहिए होगी। उन्होंने स्वच्छता को जीवन चरित्र का हिस्सा माना था और इसे रचनात्मक कार्यक्रमों की अनिवार्य सूची में शामिल किया था। वे कहते थे कि स्वच्छता ही सेवा है और साफ-सफाई ईश्वर भक्ति के बराबर है तथा यह किसी खास तबके का काम नहीं बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने स्वच्छ, स्वस्थ और खुशहाल भारत का सपना देखा था । मगर आजादी के दशकों बाद भी हम उनके इस सपने को पूरा करने में नाकाम रहे हैं।

जब 2014 में राजग की सरकार बनी तो उनके इसी सपने को पूरा करने के लिए सरकार ने 2 अक्तूबर 2014 को प्रधानमंत्री की अगुवाई में ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत की जिसने जल्दी ही जनांदोलन का रूप ले लिया। इस मिशन के लिए बजट में विशेष प्रावधान किए गए और स्वच्छता से जुड़ी अनेक योजनाएं चलाई गर्ईं जिनमें स्वच्छता पखवाड़ा, नमामि गंगे, स्वच्छता एक्शन प्लान प्रमुख हैं। इसी का परिणाम है कि ग्रामीण भारत में नौ करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण संभव हो पाया जिसकी वजह से आज 27 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है।

2014 में लगभग 39 प्रतिशत घरों में ही शौचालय उपलब्ध थे जबकि 2019 में यह प्रतिशत बढ़कर लगभग 99 हो गया है। अब जब हम इस वर्ष दो अक्तूबर को गांधीजी की 150वीं जयंती मनाएंगे तो हमारा उद्देश्य तब तक शत-प्रतिशत लक्ष्य प्राप्ति पर रहेगा। साथ ही हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि स्वच्छता को अपनी आदत में शुमार करें और दिनचर्या का हिस्सा बना लें। तभी सच्चे अर्थों में हम गांधी के सपनों का भारत बनाने में सफल हो पाएंगे।
सत्य प्रकाश, चकसाहो, समस्तीपुर, बिहार</strong>

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