दुनियाभर में अमीरों व गरीबों के बीच बढ़ती आर्थिक विषमताओं की खाई को लेकर ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट ने चौंकाने वाले आंकड़े जारी किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया के सिर्फ 26 अमीरों के पास इस समय इतनी संपत्ति है, जितनी दुनिया के 3.8 अरब लोगों के पास भी कुल मिलाकर नहीं है। यह स्थिति सिर्फ बाकी दुनिया की नहीं, भारत की भी है। हमारे देश के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति पचास प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है। ऑक्सफैम के मुताबिक देश की महज एक फीसद आबादी के पास कुल 51.53 फीसद संपत्ति है। जबकि भारत की 10 प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 77.4 प्रतिशत हिस्सा है। आय असमानता एक कल्याणकारी राज्य की सबसे बड़ी विडंबना है। आर्थिक असमानता देश में गरीबी और लोगों की निराशा में वृद्धि करती है। इसके कारण निजीकरण बढ़ने से शोषण को बढ़ावा मिलता है, कम मजदूरी मिलती है। कृषि सुधार लागू कर पाना और धन का पुनर्वितरण संभव नहीं हो पाता है। अमीरों के पास संपत्ति बढ़ने का मतलब उनके एक बड़े हिस्से का अनुत्पादक होकर अर्थव्यवस्था से बाहर हो जाना है। यह संपत्ति उपभोग, उत्पादन, रोजगार, विकास दर किसी को बढ़ाने में काम नहीं आती। समाज में बढ़ती गैर-बराबरी राज और समाज नीति पर धनी वर्ग का वर्चस्व स्थापित करती है। यह स्थिति कई नकारात्मक प्रवृत्तियों को पैदा करती है।

दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञों में इस बात पर सहमति बढ़ रही है कि आर्थिक विकास अगर समावेशी नहीं है और उसमें टिकाऊ विकास के तीन जरूरी पहलू- आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण- शामिल नहीं हैं तो वह गरीबी कम करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के दसवें लक्ष्य का उद्देश्य बढ़ती असमानता को कम करना है। अच्छी बात यह है कि एक समग्र रणनीति के तौर पर भारत सरकार विशेष रूप से जनधन-आधार-मोबाइल कार्यक्रम पर बल दे रही है जिसका उद्देश्य समावेशन, वित्तीय सशक्तीकरण और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देना है।
आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय की नींव है। आर्थिक न्याय के बिना सामाजिक न्याय की कल्पना संभव नहीं है।

वर्तमान में आर्थिक असमानता उस घुन की तरह है जो अंदर ही अंदर भारतीय समाज को खोखला बनाती जा रही है। इससे उबरने का सबसे बेहतर उपाय यही होगा कि वंचित वर्ग को अच्छी शिक्षा, अच्छा रोजगार उपलब्ध कराते हुए सुदूरवर्ती गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जाए। इसके लिए सरकार को अपनी कल्याणकारी योजनाओं पर कहीं ज्यादा खर्च करना होगा। स्वास्थ्य और शिक्षा पर कहीं ज्यादा राशि आवंटित करनी होगी। अभी इन मदों पर हमारा देश बहुत कम खर्च करता है। भारत में वह क्षमता है कि नागरिकों को एक अधिकारयुक्त जीवन देने के साथ ही समाज में व्याप्त असमानता को दूर कर सकता है।

दरअसल, आय असमानता जब गंभीर रूप से उच्चतम स्तर पर पहुंच जाती है तो उदार आर्थिक सुधारों के लिए सार्वजनिक समर्थन कम हो जाता है। जबकि सत्य यह भी है कि कोई भी देश तेज आर्थिक विकास के बिना बड़े पैमाने पर गरीबी के खिलाफ जंग जीतने में कामयाब नहीं रहा है। इसलिए आर्थिक सुधारों की रूपरेखा कुछ ऐसे तय करनी होगी, जिससे कि आय असमानता को कम किया जा सके और देश में ऐसा नया आर्थिक माहौल विकसित किया जा सके जो रोजगार, आम आदमी और गरीबों की खुशहाली पर केंद्रित हो।
कैलाश एम बिश्नोई, जोधपुर</strong>

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