अपने और अपनी पार्टी के राजनीतिक फायदे के लिए करदाता की खून-पसीने की कमाई को धरने में फूंक देना जनता पर अत्याचार से कतई कम नहीं है। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री ने दिल्ली में धरना देने के लिए दो रेलगाड़ियां बुक करा कर और अपने प्रदेश के लोगों से धरना दिलवा का महज बारह घंटे में 11 करोड़ रुपए स्वाहा कर दिए। इसी तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री भी धरने पर बैठ कर प्रदेश की मशीनरी और धन का दुरुपयोग कर चुकी हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का अनशन-धरनों का पुराना नाता रहा है, लेकिन राजनीतिक लाभ लेने के लिए रैली करके पूरी सरकार का काम रोक देना कहां की समझदारी है! सत्तापक्ष अनशन-धरनों पर कम ही बैठे देखे जाते हैं, लेकिन राज्य स्तर की नई किस्म की राजनीति के तहत केंद्र सरकार से टकराने और मतदाताओं को लुभाने या यों कहें कि बरगलाने के लिए सरकारी कोष को दोनों हाथों से दिल खोल कर बर्बाद किया जा रहा है। समय की मांग है कि राजनीतिक धरना सरकारी कोष से न करके अपनी जेब या अपनी पार्टी के कोष से किया जाए।
सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी-सेक्टर 24, दिल्ली

वायदों पर अमल: लोकतंत्र में नागरिकों को अपनी मांगें रखने का अधिकार है। लेकिन मांग मनवाने के लिए रेलगाड़ियां रोकना, पटरियों पर धरना देना, बसों को रोकना-जलाना और हिंसा पर उतारू होना सरासर अनुचित और निंदनीय है। हम सब भले ही कह लें कि गुर्जर आंदोलन या ऐसे किसी उग्र आंदोलन को सख्ती से कुचला जाए लेकिन इसके लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमारे सियासी दल भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। वे वोट व सत्ता के लालच में देशवासियों को चुनाव के दौरान लोकलुभावन लॉलीपॉप थमाते रहते हैं।
सभी समुदाय सत्ताधारियों व सियासी दलों से अपेक्षा रखते हैं कि वे चुनावों को दौरान किए गए वायदों को पूरा करेंं। अगर सियासी दलों ने समय रहते हुए सबक नहीं सीखा तो निश्चित ही आने वाले समय में स्थिति भयावह होगी। आज एक का मुंह बंद करते हैं, तो कल दूसरा भी अपनी मांग को लेकर मुंह खोलेगा। ऐसे में किस-किस का मुंह बंद करेंगे? सबसे अच्छा तरीका यही है कि सरकार सभी वर्गों को एकसमान लाभ प्रदान करे। यही सर्वजन और सर्व समाज हित में है।
हेमा हरि उपाध्याय, जावरा रोड, उज्जैन

डॉक्टरी लापरवाही: पिछले दिनों हैदराबाद के अस्पताल में एक महिला अपने पैर के आॅपरेशन के लिए भर्ती हुई जहां डॉक्टरों ने लापरवाही के चलते उसके दूसरे पैर का ऑपरेशन कर दिया। जब महिला होश में आई तब पता चला कि परेशानी तो दूसरे पैर में थी लेकिन स्वस्थ पैर का आॅपरेशन कर दिया गया। यह पहला मामला नहीं है जिसमें ऐसी लापरवाही हुई हो। एक मामले में तो डॉक्टर ने आॅपरेशन करते वक्त महिला के शरीर में ही कैंची छोड़ दी थी। आखिर ऐसी लापरवाहियों का खमियाजा मरीज कब तक भुगतते रहेंगे? सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और दोषी डॉक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
प्रदीप कुमार सारण, कृष्ण नगर, बीकानेर

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