देश में सड़क पर गड्ढों के कारण लगातार बढ़ते मौतों के आंकड़ों पर आई रिपोर्ट ने एक बार फिर से प्राधिकरणों, प्रशासन और नगर निकायों के दावों की पोल खोल दी है। उच्चतम न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली सड़क सुरक्षा समिति की रिपोर्ट पर केंद्र और राज्यों से जबाब से मांगा है। अदालत ने गड्ढों की वजह से सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ती मौतों को अस्वीकार्य बताते हुए कहा है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण एवं अन्य विभाग सड़कों का ठीक से रखरखाव नहीं कर रहे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में 2013 से 2017 के दौरान गड्ढों की वजह से हुए सड़क हादसों में 14,926 लोगों की मौत हुई। न्यायालय ने इस आंकड़े को सीमा पर आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों से भी अधिक बताया है। अदालत ने सड़क हादसों की वजह से तबाह होने वाले परिवारों को मुआवजा नहीं दिए जाने पर भी नाराजगी जताई है। इन हादसों के आधे से ज्यादा पीड़ित ऐसे होते हैं जिन्हें पात्र होने के बावजूद मुआवजा नहीं मिल पाता है।
देश में बारिश आते ही घटिया निर्माण की वजह से आसपास की सड़कें जगह-जगह पर टूट जाती हैं और कुछ ही दिनों में गहरे गड्ढों में तब्दील हो जाती हैं, लेकिन इसके बावजूद लोग कष्ट सह कर गाड़ियां चलाते रहते हैं। लेकिन बिंडंबना यह है कि इन हादसों और लापरवाही को लेकर कभी किसी प्रशासनिक अधिकारी या नेता से इस बारे में सवाल नहीं पूछ जाते। इसीलिए तंत्र तमाशबीन हो जाता है। यह उस भारत की सच्चाई है जो विश्व गुरु बनने का सपना देखता है। महाशक्ति बनने के लिए भारत ने जो रास्ता बनाया है, उसमें गड्ढे ही गड्ढे हैं। आजादी के 70 साल बाद भी हमारा तंत्र, हमारा प्रशासन और अलग-अलग सरकारें देश के लोगों को अच्छी और सुरक्षित सड़क नहीं दे पाए। हमारा तंत्र सड़कों पर चलने वाले हर बाहन के लिए रोड टैक्स वसूलता है। लेकिन सुविधा के नाम पर लोगों के साथ लगातार धोखा किया जाता है।
वर्ष 2016 में देश की सरकारों ने मोटर व्हीकल टैक्स और फीस के रूप में करीब साठ हजार करोड़ रुपए जुटाए थे। लेकिन जन सुविधा देने की बारी आती है तो लोगों को बदले में गड्ढों वाली सड़कें और परेशान करने वाला लंबा ट्रैफिक जाम मिलता है। रोड टैक्स और टोल टैक्स लेने के बाद सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह लोगों को बेहतर और सुरक्षित सड़क उपलब्ध कराए, लेकिन अफसोस है कि ऐसा कभी नहीं होता है। लोगों की जान लेने वाले निष्ठुर तंत्र, ठेकेदार, सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों पर आपराधिक मुकदमा चलना चाहिए। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सड़कों के निर्माण कार्य के ठेकों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है, जिसकी वजह से कार्य की गुणवत्ता खराब होती है और बाद में यही भ्रष्टाचार लोगों की जान ले लेता है। लेकिन अब वक्त आ गया है कि हम उन लोगों पर सवाल उठाएं जो असल में इन दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं।
अश्विनी शर्मा, बीएचयू, वाराणसी
राजनीति में आएं नौजवान: देश में सरकारी व निजी क्षेत्र में नौकरी के लिए न्यूनतम व अधिकतम शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ आयु सीमा भी निर्धारित की गई है, वहीं उसी सरकारी कर्मचारी को सरकार 58 या 60 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद सेवानिवृत्त कर देती है। लेकिन राजनीतिकों की सेवानिवृति की कोई उम्र नहीं है। वैसे तो उम्रदराज नेताओं को खुद ही पीछे हट जाना चाहिए, लेकिन यदि ऐसा नहीं भी होता है तो युवाओं को खुद आगे आना चाहिए। एक तरफ हम दुनिया में अपनी युवा आबादी का डंका पीट रहे हैं तो दूसरी तरफ उन्हें देश निमार्ण में भागीदार नहीं बना रहे। आज राजनीति में बाहुबल व शक्ति प्रदर्शन दिनों-दिन बढ़ रहा है। पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी को इसमें बदलाव की पहल करनी चाहिए। जब अच्छे लोग सियासत में होंगे तो उनका नजरिया भी विकास पर आधारित होगा। युवा पीढ़ी में व्यापारी, वकील, शिक्षक, पत्रकार, किसान कवि-साहित्यकार और अन्य क्षेत्र के लोगों को भी आगे आकर सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेना चाहिए, क्योंकि किसी भी पार्टी से बढ़ कर उनकी अपनी व्यक्तिगत छवि होती है। किसी वर्ग विशेष अथवा धर्म के व्यक्ति को टिकट देने की परंपरा को अब बदला जाना चाहिए। जो जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद देश या अपने राज्यों की समस्याओं को लेकर आवाज न उठा पाते हों, ऐसे नेताओं को चुनने की परंपरा बदली जानी चाहिए। यह सब नौजवान ही कर सकते हैं और कोई नहीं।
राजेश वर्मा, बलद्वाड़ा-मंडी
कंकालों का धंधा: इंसान कफन चोर होता है, यह तो सुना था। मगर मुर्दों और कंकालों की तस्करी, अब सुनने, पढ़ने और देखने को मिल रही है। हाल में छपरा स्टेशन पर एक व्यक्ति को ट्रेन में नरकंकाल के साथ पकड़ा गया। उससे पहले बिहार के मुजफ्फरपुर स्टेशन पर 19 अक्तूबर को नरकंकाल लावारिस हालत में पाया गया था। इंसान की लाश का व्यापार रोंगटे खड़े कर देने वाली बात है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि इन हड्डियों और खोपड़ियों को आखिर कोई क्यों खरीदता होगा? क्या इसका उपयोग औषधि निर्माण में किया जाता है? या फिर तांत्रिक विद्या से इसका कोई लेना-देना है? बिहार पुलिस बता रही है कि नेपाल और चीन में इन्हें बेचा जाता है। आखिर इस रहस्य से पर्दा उठना चाहिए।
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर
पेड़ों को बचाएं: देश में विकास के नाम पर पेड़ों की बेतहाशा कटाई और जंगलों को मनमाने ढंग से उजाड़ने के कारण लगातार जल संकट गहराता जा रहा है। यदि हालात नहीं सुधरे तो भविष्य में लोगों को एक-एक बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है। वृक्षारोपण अभियान में भ्रष्टाचार व लापरवाही व्याप्त होने से इसका अनुकूल लाभ भी नहीं हो पा रहा है। वर्षा जल का संचय न करना भी जलसंकट बढ़ने का कारक है। लोगों को जल संचय एवं वृक्षारोपण के लिए जागरूक होना और साथ ही लोगों के बीच जागरूकता फैलाना भी बेहद आवश्यक है।
दीपक पटेल, बलौदा बाजार
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