पुलवामा के आतंकी हमले की विश्व भर में घोर निंदा हुई है। सभी देशों ने भारत के साथ सहानुभूति और एकजुटता जताई है। अब समय आ गया है जब सरकार कोई निर्णायक कदम उठा कर आतंक के इस नासूर को जड़ से साफ कर दे। कहने की आवश्यकता नहीं कि श्रीलंका ने बहुत सहा मगर आखिर आजिज आकर उसने एलटीटीई जैसे दुर्दांत आतंकी संगठन को अपनी सैन्य शक्ति से नेस्तनाबूद कर दिया। क्या हमारा देश कश्मीर के अलगाववादियों और पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों को ऐसा ही पाठ नहीं पढ़ा सकता? ध्यान रहे कांटा कांटे से ही निकलता है!
विडंबना है कि देश-विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ के जवान ही तैनात रहते हैं। फिर भी इनमें से किसी ने पुलवामा की जघन्य आतंकी घटना की निंदा नहीं की। ये देश विरोधी बातें भी करते रहे हैं और सरकार से सुरक्षा भी पा रहे हैं! शायद ही किसी देश में ऐसा होता हो!
शिबन कृष्ण रैणा, अरावली विहार, अलवर

आखिर कब: पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर जिस तरह आतंकी हमला हुआ उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इनमें अहम है कि आखिर इस काफिल्के गुजरने की सूचना आतंकी संगठन तक कैसे पहुंची? खुफिया विभाग ने जम्मू कश्मीर राष्ट्रीय राजमार्ग पर आतंकी हमले का एलर्ट जारी किया था, फिर भी इतना बड़ा हमला हो जाना बहुतदुखद है। हमले के बाद जिस तरह से आतंकी संगठन ने जिम्मेदारी ली है उसे सरकार को चुनौती के रूप में लेना चाहिए। शहीदों के खून के एक-एक कतरे का हिसाब लिया जाना चाहिए। जवानों की शहादत केवल निंदा या आश्वासन के शब्दों में उलझ कर न रह जाए। सरकार एक के बदले दस सर लाने के वादे को आखिर कब पूरा करेगी?
मोहम्मद आसिफ, जामिया नगर, दिल्ली

वाजिब अवसर: पुलवामा के जघन्य हत्याकांड ने देश के अलावा समूचे विश्व को झकझोर कर रख दिया है। आतंकवाद का पर्याय पाकिस्तान बातों से तो हरगिज मानने वाला नहीं है। वह तबाही के कगार पर खड़ा है, फिर भी उसने अपने जीडीपी का बड़ा हिस्सा भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए तय कर रखा है। समय आ गया है कि भारत पाकिस्तान की आर्थिक कमर पर प्रहार करे। भारत सरकार कड़े फैसले ले और समूचे विपक्ष को भी दलगत राजनीति से इतर सरकार के हर फैसले के साथ खड़ा हो जाना चाहिए।

भारत सरकार पाकिस्तान को ‘मोस्ट फेवरेट नेशन’ का दर्जा तो समाप्त कर ही चुकी है, अब उसे नदी जल बंटवारा संधि भी खत्म कर देनी चाहिए ताकि वह पानी की बूंद-बूंद के लिए मोहताज हो जाए। पाकिस्तान से व्यापारिक और राजनयिक संबंध कायम रखने का अब कोई मतलब नहीं है। कश्मीर में धारा 370 खत्म करने का भी यह वाजिब अवसर है, इसलिए लगे हाथ इसे कार्यान्वित कर ही दिया जाए। तभी आतंकवाद की कमर टूटेगी, नहीं तो हमारे जवान इसी तरह अपने प्राणों का बलिदान देते रहेंगे।
सतप्रकाश, रोहिणी, नई दिल्ली

यह दायित्व: पुलवामा में दिल दहला देने वाले आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों की मौत ने आतंकवाद और उससे निपटने की नीति पर फिर सवाल खड़ा कर दिया है। सीमा पर दुश्मन से लड़ने और देश में उपद्रवियों से संघर्ष करने की जिम्मेदारी सैनिकों की है तो राजनीतिक शक्ति का दायित्व है कि ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करे जहां इस तरह की हिंसक परिस्थितियां पैदा होने से टाली जा सकें। जिम्मेदार और उदार लोकतांत्रिक देशों से यह उम्मीद नहीं की जाती कि उनकी नीतियां और उनके काम प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हों। तुरंत दी गई प्रतिक्रिया शांति स्थापित होने की गारंटी नहीं देती।
शिवानी पटेल, कानपुर

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