जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में गुरुवार को सीआरपीएफ के काफिले पर हमले में जवानों के मारे जाने पर राजनीति करना बेहद अफसोसनाक है। कांग्रेस के प्रवक्ता ने कहा कि उड़ी, पठानकोट, पुलवामा आतंकी हमलों की शृंखला और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता जारी है मगर केंद्र सरकार चुप है। उधर विदेश राज्यमंत्री और पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह ने कहा कि सेना के जवानों के खून की एक-एक बूंद का बदला लिया जाएगा। कांग्रेस प्रवक्ता ने गिनाया कि राजग सरकार के पांच साल में यह सत्रहवां बड़ा हमला है। उसके मुताबिक आतंकी हमारी सेना के जवानों के सिर काटकर ले जाते हैं और प्रधानमंत्री चुप रहते हैं!
इसे भारतीय राजनीति में संजीदगी के अवसान का दौर कहें या फिर राजनीतिक अपरिपक्वता का नायाब नमूना कि पुलवामा के जघन्य आतंकी हमले को भी सियासी नफा-नुकसान के तराजू में तोला जा रहा है।
जब बात भारत की अखंडता, अस्मिता, सांप्रदायिक सौहार्द पर मंडराते खतरे की हो तब भी नेताओं की जुबानें जले पर नमक छिड़कने का काम कर रही हैं। आतंकी हमले जैसे संवेदनशील मसले पर भी राजनीतिक दल अपना फायदा देखने की कोशिश कर रहे हैं। इनदलों को समझना होगा कि आतंकवाद का कोई मजहब व चेहरा नहीं होता है, उसे बस आतंक फैलाने और खून बहाने से मतलब होता है। ऐसे हमले के बाद एक ओर जहां देश में गुस्से और गम का माहौल है वहीं दूसरी और सियासी दल इस पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने को तैयार हैं। अपने ही मुल्क के नेताओं को आतंकी हमले में अगर राजनीति की गुंजाइश और साजिश दिखाई देने लगे तो फिर संजीदगी की उम्मीद किससे की जाए!
दरअसल, सियासत का नया स्टाइल पहले सीबीआइ की कार्रवाई में सियासी साजिश देखता था तो अब आतंकी हमलों में भी देखने लगा है! जब देश बाह्य और आंतरिक खतरों से एक साथ कई मोर्चों पर जूझ रहा हो तो उस वक्त नेताओं के ऐसे बयान उनकी सोच पर सवाल खड़े करते हैं। ऐसे वक्त में आपसी मतभेद भुलाकर साथ खड़े रहने की जरूरत होती है। यही सोच एक स्वस्थ लोकतंत्र की भी पहचान है लेकिन दुर्भाग्यवश नेता अपने सियासी हित के चलते ऐसे बयान देने लगते हैं जो सीमा पार बैठे दुश्मनों के लिए खुराक का काम करते हैं।
अमन सिंह, प्रेमनगर, बरेली, उत्तर प्रदेश</strong>
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