दिल्ली की हवा को साफ-सुथरा रखने के लिए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने डीजल के दस साल और पेट्रोल के पंद्रह साल पुराने सभी वाहनों को राजधानी की सड़कों से हटाने का आदेश जारी कर दिया है। किसी भी शहर के नागरिकों को साफ हवा मिले इस पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है! मगर यहां एक सवाल पूछा जा सकता है कि आखिर वाहन की आयु और प्रदूषण में क्या संबंध है या हो सकता है? किसी भी वाहन में प्रदूषण का एक मात्र कारक वाहन का इंजन होता है। इंजन के कलपुर्जों क्रेंक, कनेक्टिंग रॉड, बिगिन, गजन पिन, रिंग पिस्टन, गरारी, बेयरिंग और पंप के नोजिल पलंजर में से किसी भी एक की सैटिंग अगर खराब है तो एक-दो साल पुराना इंजन भी प्रदूषण फैला सकता है और अगर इंजन की ट्यूनिंग और लाइनिंग सही है तो दस-पंद्रह साल पुराना इंजन भी प्रदूषण नहीं फैलाएगा। इसके अतिरिक्त घटिया और मिलावटी तेल भी प्रदूषण का कारण होते हैं। इनका भी वाहन की आयु से कोई संबंध नहीं है।

दरअसल, उपयोग में आने वाले सामानों की आयु तय करने की अवधारणा जापान, अमेरिका, फ्रांस और इंगलैंड आदि विकसित देशों की है। भारतीय अवधारणा ‘दादा ले और पोता बरते’ की है। इसलिए यहां जो भी उपयोग की वस्तु बाजार में आती है उसके कल-पुर्जे भी बाजार में आ जाते हैं। इसके विपरीत विकसित देशों में जो वस्तु बाजार में आती है उसके कल-पुर्जे प्राय: नहीं आते। विदेशी अवधारणा ‘यूज एंड थ्रो’ की है। यही कारण है कि विदेशों से आयातित लाखों की मशीनें कल-पुर्जे खराब होने के कारण बेकार पड़ी रहती हैं क्योंकि उनके कल पुर्जे बाजार में उपलब्ध नहीं होते। वाहनों के इंजन में किसी कल-पुर्जे के खराब हो जाने पर भारत में इंजन की ‘ओवरहालिंग’ का प्रबंध हर शहर में होता है। इसके लिए बड़े और छोटे कारखाने और मिस्त्री हर शहर में उपलब्ध हैं। इसके विपरीत विकसित देशों में इंजन की ओवरहालिंग का प्रबंध प्राय: नहीं होता। हमारे यहां इंजन में खराबी आने पर मालिक उस की ओवरहालिंग कराते रहते हैं। विकसित देशों में एक मॉडल एक बार बनाया जाता है, उसके बाद दूसरा मॉडल बाजार में आ जाता है। इंजन के जानकारों का मानना है कि इंजन द्वारा वायु प्रदूषण का संबंध उसकी आयु से नहीं हो सकता।

इस समस्या एक पहलू यह भी है कि एनजीटी की चिंता केवल दिल्ली को लेकर है। अगर पंद्रह साल पुराना वाहन प्रदूषण फैलाता है तो उस पर सारे देश में पाबंदी होनी चाहिए। क्या एनजीटी की दिल्ली के लिए चिंता केवल इसलिए है कि यहां वीआइपी और वीवीआइपी रहते हैं? पंद्रह साल पुराना वाहन दिल्ली में जितना प्रदूषण फैलाएगा मेरठ, मुरादाबाद, कानपुर और जयपुर आदि में भी उतना ही फैलाएगा। दिल्ली में प्रदूषण रोकने के और भी बहुत उपाय हैं। जैसे यहां केवल सीएनजी बसें चलती हैं मगर अन्य शहरों में तो ऐसे उपाय भी नहीं हैं। इसलिए एनजीटी को अन्य शहरों की भी चिंता होनी चाहिए मगर ऐसा है नहीं। तो क्या यह माना जाए कि एनजीटी की स्थापना का मकसद केवल बड़े लोगों की चिंता करना है?

अब इस समस्या का दूसरा पक्ष भी देखें। दिल्ली में जो आंकड़े जारी किए गए हैं उनके अनुसार पंद्रह साल पुराने वाहनों की कुल संख्या अड़तीस लाख है। इनमें चौदह लाख व्यावसायिक वाहन हैं। शेष चौबीस लाख निजी वाहन हैं जिनमें दो पहिया और चार पहिया दोनों शामिल हैं जिनका उपयोग अपनी आवश्यकता के लिए लोग करते हैं। ये वाहन हटने पर लोगों को तुरंत नए वाहन की आवश्यकता होगी। इसका सीधा मतलब है कि बाजार में नए वाहनों की मांग में भारी इजाफा हो जाएगा जिसका सीधा लाभ वाहन निर्माता कंपनियों को होगा।

अगर यह कहा जाए तो कुछ गलत न होगा कि पंद्रह साल पुराने वाहनों को दिल्ली की सड़कों से हटाने का एनजीटी का आदेश वाहन निर्माता कंपनियों को लाभ पहुंचाने का जाने-अनजाने एक जरिया बनने जा रहा है। इसके साथ ही यह आदेश उन छोटे कारखानेदारों औ मिस्त्रियों की रोजी-रोटी पर भी कुठाराघात करेगा जो इंजनों की ओवरहालिंग कर अपने परिवारों का पेट पाल रहे हैं।
समस्या यह है कि यहां कई आदेश बिना सोचे-समझे जारी कर दिए जाते हैं। यह नहीं देखा जाता कि उनका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा। एनजीटी का यह आदेश भी कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है।
महर उद्दीन खां, बढपुरा, दादरी

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