ब्रिटिश कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका पर आरोप है कि उसने करीब पांच करोड़ फेसबुक उपभोक्ताओं का डाटा चोरी करके उसका इस्तेमाल दुनिया के विभिन्न नेताओं की मदद के लिए किया। इन नेताओं में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल हैं। अंदेशा है कि चोरी किए गए फेसबुक डाटा का दुरुपयोग ब्रिटेन के यूरोपीय समुदाय से अलग होने को लेकर जनमत संग्रह यानी ब्रेग्जिट में भी किया गया। इसमें दो राय नहीं कि तकनीक किसी भी देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अनेक फायदे पहुंचाने व कार्य संस्कृति में नयापन लाने का मद्द रखती है। लेकिन हाल ही में जिस तरह फेसबुक उपयोगकर्ताओं का डाटा चोरी कर अमेरिकी चुनाव में उसके दुरुपयोग का मामला सामने आया है, वह दर्शाता है कि डाटा लीक समेत तमाम साइबर अपराध न सिर्फ विकासशील देशों बल्कि विकसित देशों के लिए भी समान रूप से एक गंभीर चुनौती हैं।

भारत के संदर्भ और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में इसके महत्त्व को समझें तो मोबाइल बैंकिंग, मोबाइल गेटवे और सॉफ्ट करेंसी के माध्यम से तीव्र लेन-देन संभव हुआ है। इसके अतिरिक्त आउटसोर्सिंग क्षेत्र में रोजगार के नए विकल्प भी खुले हैं। यह डिजिटलीकरण का ही कमाल है कि शिक्षा के क्षेत्र में ई-लर्निंग जैसी आभासी कक्षाओं व स्वास्थ्य के क्षेत्र में मोबाइल क्लीनिक जैसे नवीनतम विकल्पों का विकास संभव हुआ। सिक्के के दो पहलू की भांति इसके भी दो पहलू हैं। एक तरफ जहां तकनीक का उज्ज्वल पक्ष है, तो दूसरी तरफ ताजा आंकड़ों के अनुमान मुताबिक भारत में पिछले दस वर्षों में साइबर अपराधों में उन्नीस गुना वृद्धि हुई है। यह न सिर्फ हमारी निजी जानकारियां लीक होने की आशंका को बढ़ाती है बल्कि युवाओं को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल करने का काम भी आसान कर रही है। हालांकि कहना कठिन है कि भारत में भी चुनाव संबंधी डाटा का दुरुपयोग हुआ है लेकिन सहयोगी कंपनी ने यह स्वीकार करके संदेह बढ़ा दिया है कि उसने यहां के कई दलों को अपनी सेवाएं दी हैं, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र देश भारत के लिए नया खतरा साबित हो सकता है।

कुल मिला कर कहें तो एक तरफ जहां इंटरनेट ने हमारी जिंदगी को सरल बनाने और समय बचाने का काम किया है तो दूसरी ओर डिजिटल साधनों के दुरुपयोग संबंधी साइबर अपराध नामक नवीन समस्या को जन्म दिया है। साइबर अपराधों में लगातार वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि कठोर दंड का प्रावधान करने वाले सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 व 2013 में पारित राष्ट्रीय सुरक्षा नीति, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय अति संवेदनशील सूचना और अवसंरचना संरक्षण केंद्र की स्थापना की गई, जैसे प्रयास सराहनीय तो हैं लेकिन इन्हें पर्याप्त नहीं कहा जा सकता।

ऐसे में व्यक्तिगत व सांगठनिक स्तर पर भी कदम उठाना आवश्यक है। साइबर खतरे को कम करने के लिए हमारी प्राथमिक कोशिश यह होनी चाहिए कि किस तरीके से लोगों में सजगता का विकास हो। इसके लिए साइबर सुरक्षा संबंधी विषय वस्तु को पाठ्यक्रम में शामिल करना व विभिन्न प्रकार के संगठनों व गैर सरकारी संगठन, सिविल सोसाइटी के माध्यम से जन जागरूकता फैलाना एक बेहतर विकल्प हो सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर एंटीवायरस, मालवेयर का प्रयोग भी अति आवश्यक है और इसे समय-समय पर अद्यतन करना भी जरूरी है। इन उपायों व मजबूत रणनीति के जरिए न सिर्फ संविधान प्रदत्त निजता के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सकेगा बल्कि देश की एकता व अखंडता को ठेस पहुंचाने वाले तत्त्वों से भी निजात पाई जा सकती है।
’विनोद राठी, रोहतक