इक्कीसवीं सदी के अत्याधुनिक भारत में आज भी समाज का एक बड़ा तबका अंधविश्वास और रूढ़ियों के गर्त में पड़ा हुआ है। परंपराओं और मान्यताओं के नाम पर कुछ तथाकथित ‘ज्ञानी’ लोग खुद को धर्म का संरक्षक माने बैठे हैं। ऐसे लोगों को न तो कानून का खौफ है और न संविधान की परवाह। हाल ही में दो जुलाई को राजस्थान के बूंदी जिले के हिंडौली गांव में एक रूढ़िवादी मान्यता के चलते खुद को न्याय का देवता समझ कर वहां के जाति पंचों ने महज छह साल की मासूम बच्ची का समाज से बहिष्कार कर दिया। उस बच्ची को दस दिन तक घर के बाहर टीनशैड में बंधक बना कर रखा गया, उसे उसके मां-बाप से भी नहीं मिलने दिया गया। इतना ही नहीं, बच्ची के पिता को जुर्माने के रूप में कई रूढ़ियां निभानी पड़ीं और निर्लज्ज पंचों को नमकीन के साथ और अंग्रेजी शराब पिलानी पड़ी। बच्ची का दोष सिर्फ यह था कि भूलवश उसका पैर टिटहरी के अंडे पर पड़ गया जिससे वह नष्ट हो गया। पंचों ने इसे बहुत बड़ा अपशकुन माना और बच्ची को सामाजिक बहिष्कार का दंड दिया।

इस भूल पर बच्ची को जहां प्यार से जीवों का महत्त्व बताने की जरूरत थी वहां इतना बड़ा दंड और दंड के लिए पंचायत तक बैठा ली! कितने संवेदनहीन और निर्मम रहे होंगे वे पंच जिन्होंने मासूम बच्ची को इतनी कठोर सजा दी! कल्पना कीजिए कि छह साल की बच्ची ने, जो बहिष्कार का अर्थ तक न समझती हो, इतनी भीषण गर्मी में तपते हुए टीनशैड के नीचे जानवरों की तरह बंधक बन कर दस दिन कैसे गुजारे होंगे! भला हुआ कि प्रशासन को इसकी खबर लग गई वरना ये लोग बच्ची को और न जाने कितने दिन तक बंधक बना कर रखते।
क्या ऐसी रूढ़ियों का कभी अंत नहीं होगा? क्या कभी खोखली मान्यताओं के नाम पर मानवता को शर्मसार करने वाली ऐसी घटनाएं रुक पाएंगी? न जाने भारत में ऐसे कितने गांव होंगे जहां अंधविश्वास और रूढ़ियों के रहते निर्दोष लोग सताए जा रहे होंगे। अंधविश्वास से ग्रस्त ऐसे लोगों को सजा देना ही पर्याप्त नहीं होगा बल्कि उनके दिमाग से अंधविश्वासों को खत्म करना होगा। इसके लिए हर गांव में ऐसे शिक्षण केंद्र खोले जाएं जहां लोगों को जागरूक किया जाए, साथ ही उनके दिमाग में तर्कशक्ति और वैज्ञानिक सोच का बीजारोपण किया जाए।
’कमलेश रजक, बिल्हारी-दतिया, मध्यप्रदेश

हमारा दायित्व
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस महीने 15 जुलाई से पॉलीथीन को प्रतिबंधित करने का अत्यंत सराहनीय कार्य किया है। पॉलीथीन के इस्तेमाल से प्रदूषण की समस्या के साथ-साथ लोगों का स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। पॉलीथीन बैग बनाने में कैडमियम और जस्ता जैसी विषैली धातुओं का प्रयोग होता है जो खाने की चीजों को विषैला बना देती हैं। अब जरूरत है इस नियम को कड़ाई से लागू करने की। यदि कहीं भी पॉलीथीन बैग इस्तेमाल होता पाया जाए तो इस्तेमाल करने वाले पर जुर्माना लगाया जाए। सरकार के साथ-साथ हम लोग भी अपनी जिम्मेदारी समझें और पॉलीथीन के इस्तेमाल को बंद करके धरती को बचाने में अपना सहयोग दें। सरकार से अपील है कि पेपर, जूट व कपड़े के बैग लोगों को निशुल्क उपलब्ध कराए ताकि पॉलीथीन बैग का इस्तेमाल पूर्ण रूप से बंद हो सके।
’बृजेश श्रीवास्तव, गाजियाबाद