राजनीति में विपक्ष द्वारा सत्तापक्ष का हर बात में विरोध करने का नकारात्मक परिणाम यह होता है कि जनता उसकी बात पर ध्यान देना छोड़ देती है। कांग्रेस आलाकमान को तो यह बात समझ नहीं आ रही, पर उनके नेताओं जयराम रमेश, शशि थरूर और मनु अभिषेक सिंघवी अवश्य ही समझ रहे हैं। पिछले पांच से अधिक वर्ष से, जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं अथवा राजग की सरकार बनी है, कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने उनके हर कार्य का एकतरफा विरोध किया है, किसी अच्छे कार्य की प्रशंसा एक बार भी नहीं की। नोटबंदी, पाकिस्तान में लक्षित हमले और तीन तलाक का तो जोरदार विरोध किया ही, साथ में राष्ट्रहित से जुड़े अतिसंवेदनशील मुद्दे जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने का भी जबरदस्त विरोध कर बैठे।

होना तो यह चाहिए था कि राष्ट्रीय एकता से जुड़े इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार का साथ देते, लेकिन यहां भी कांग्रेस ने इसे अपनी नाक का सवाल समझा। पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने के किसी भी दांवपेच को चूकना नहीं चाहता। कांग्रेस का यह विरोध पाकिस्तान का हौसला बढ़ाने का काम करेगा और यह विरोध भारत को बड़ी क्षति पहुंचा सकता है। कांग्रेस को चाहिए कि वह अपनी आंखों से सरकार के विरोध का चश्मा हटा कर राष्ट्रहित के लिए उसके सही कार्यों की मुक्तकंठ से प्रशंसा करे। इससे कांग्रेस की छवि और जनाधार में वृद्धि ही होगी।
’सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी, नई दिल्ली</p>

रोजगार पर संकट
जब 1951-52 में पंचवर्षीय योजना को हरी झंडी दी गई थी, तब विनोबा भावे ने कहा था कि सरकार की सभी राष्ट्रीय योजनाओं का मकसद रोजगार बढ़ाना भी होना चाहिए। सरकार को ऐसी कोई योजना या नीति बनाने से परहेज करना चाहिए, जिससे किसी भी उद्योग-धंधे पर नकारात्मक असर पड़े और लाखों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल छाएं। उसे देश के विकास के लिए ऐसी योजनाएं बनानी चाहिए जिनसे रोजगार बढ़े। हमारे देश के आर्थिक मंदी की चपेट में आने की खबरें सुर्खियां बनी हैं। इस पर सरकार, विपक्ष, अन्य राजनीतिक पार्टियों और बुद्धिजीवियों के अपने-अपने तर्क-वितर्क सामने आ रहे हैं। इस मंदी ने बहुत से लोगों के नोटबंदी के जख्मों को भी हरा कर दिया क्योंकि नोटबंदी के समय भी अनेक उद्योग धंधों, व्यापार और रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ा था।

हालांकि सरकार ने मौजूदा आर्थिक मंदी से निपटने के कुछ उपाय भी किए हैं और इस मंदी के अंतरराष्ट्रीय स्तर के कुछ कारण भी बताए जिनमें मुख्य अमेरिका और चीन का व्यापार युद्ध है। इन कारणों के बरक्स सरकार को आर्थिक मंदी दूर करने के लिए अपनी मौद्रिक नीतियों में रद्दोबदल करनी पड़े तो वह भी की जानी चाहिए।
’राजेश कुमार चौहान, जालंधर