आज औद्योगिक कचरा, प्लास्टिक और कीटनाशक देश को ऐसी बीमारियां दे रहे हैं जिनके इलाज में आम आदमी की गाढ़ी कमाई खर्च हो रही है। कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी के मूल में यही कारक विद्यमान हैं। महाराष्ट्र का विदर्भ, कर्नाटक का उडुपी और केरल का कासरगोड हरित क्रांति का सबसे पहले फायदा उठाने वाले जिले रहे हैं मगर इन्हें उसका खमियाजा भी भुगतना पड़ा है। हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि हरित क्रांति के दौरान रासायनिक खाद, संकर बीज और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा जिससे कैंसर एवं मस्तिष्क विकार आदि अनेक बीमारियां इन जिलों को अपनी चपेट में लेने लगीं। इससे आजिज आकर अब वहां के लोगों ने जैविक खेती अपनाना शुरू कर दिया है जिससे हालात काफी हद तक सुधर भी रहे हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि अब वही गलती उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश के किसान कर रहे हैं।
ऐसे में शिक्षाविदों, बुद्धिजीवी वर्ग और सरकार का दायित्व हो जाता है कि वे संचार माध्यमों व अन्य स्रोतों से जागरूकता कार्यक्रम चला कर किसानों को सचेत करें। जिन कीटनाशकों का प्रयोग हम अपने खेतों में करते हैं उनका महज तीन से पांच प्रतिशत भाग फसलों को मिलता है, शेष हवा, पानी और मिट्टी के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश कर अनेक लाइलाज बीमारियों को जन्म देता है। इससे वाकिफ होते हुए भी जो किसान अधिक अन्न उपजा कर मुनाफा कमाने के लालच में इसे अपनाते चले जा रहे हैं उन्हें हमें समझाना होगा कि जिन कीटनाशकों का प्रयोग कर वे अधिक अन्न पैदा कर रहे हैं, वही आने वाले समय में जमीन को बंजर बना देंगे।
देश के किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इसके लिए कृषि मंत्रालय से लेकर ग्राम पंचायत और उससे जुड़े विभागों को ऐसी योजनाएं चलानी चाहिए जो जनमानस को सचेत कर सकें। इसके साथ हमें कीटनाशकों के विकल्प पर भी विचार करना होगा।
’धर्मेंद्र प्रताप सिंह, कासरगोड, केरल
नाहक विरोध
नए मोटर वाहन कानून के तहत जुर्र्माने की दरें अधिक होने का चारों तरफ विरोध हो रहा है। लेकिन यह हकीकत है कि कोई भी कार्य बिना दबाव के नहीं होता है। यह भी सच है कि नियम-कायदे से चलने वालों को कोई दिक्कत नहीं है। हम जानते हैं कि विदेशों में सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर भी 1000 डॉलर तक का जुर्माना लगाया जाता है, यातायात नियम तोड़ना तो बहुत बड़ी बात है। लिहाजा, देशवासियों को यातायात नियमों का पालन बिना किसी हील-हुज्जत के करना चाहिए क्योंकि ये उन्हीं के हित के लिए बनाए गए हैं।
’कपिल एम वड़ियार, पाली, राजस्थान</em>
बंजर बने उपजाऊ
प्रधानमंत्री ने हाल ही में कॉप-14 सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टयर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाएगा। इसके लिए वह रिमोट सेंसिंग और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहा है। भारत में करोड़ों हेक्टयर भूमि व्यर्थ और बंजर पड़ी है। यदि इसे उपजाऊ बनाने का प्रधानमंत्री का संकल्प कार्यरूप में परिणत हो जाता है तो बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न और जलसंकट की समस्या से निजात पाई जा सकेगी। साथ ही जमीन उपजाऊ बनेगी तो पर्यावरण भी सुधरेगा और देश की बेरोजगारी भी धीरे-धीरे खत्म होगी, आने वाले समय में जंगलों और पशुधन की वृद्धि भी होगी। इससे जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और भूमि के कटाव की समस्या भी हल होने लगेगी।
’संजय डागा हातोद, इंदौर</em>