किसी भी देश का साक्षरता प्रतिशत उस देश के विकास और संपन्नता की स्थिति को प्रदर्शित करता है। साक्षरता का अर्थ पढ़ने-लिखने की योग्यता से है। साक्षरता मानव विकास की आधारशिला है। आजादी से पूर्व भारत की आबादी में निरक्षरों की संख्या बहुत अधिक थी। लेकिन सरकार के अथक प्रयासों से आज समाज हर व्यक्ति शिक्षित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। निरक्षर व्यक्ति ज्ञान और जानकारी के अथाह भंडार से वंचित रह जाता है। वह न तो अपने अधिकारों के बारे में जान पाता है, न ही जनसामान्य के लिए उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठा पाता है। इसलिए आज के युग में निरक्षरता दूर करने का लक्ष्य बड़ा होना चाहिए। घर-घर और गांव-गांव शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए, जिससे की हर व्यक्ति के बौद्धिक स्तर में उन्नति हो। वह अंगूठा छाप न रहे, उसे कोई ठग न सके। हर वर्ग का व्यक्ति अपनी अच्छाई-बुराई समझ सके। निरक्षरता दूर होगी तो अंधविश्वासों और शोषण से भी मुक्ति मिले। देहाती लोगों के साथ होने वाली घटनाओं के बारे में कौन नहीं जानता। निरक्षर लोगों से अंगूठे लगवा कर साहूकारों और जमींदारों ने अनेक लोगों को बंधुआ मजदूर बनने पर मजबूर कर दिया, अनेकों के घर जमीन हड़प लिये। निरक्षरों का हर जगह शोषण हो रहा है।
किसी व्यक्ति के लिए साक्षर होना उतना ही अनिवार्य है जितना एक दृष्टिहीन के लिए रोशनी। शिक्षा के बिना प्रगति का पहिया एक इंच भी नहीं सरक सकता। दुर्भाग्य से भारत में निरक्षरता का अंधकार बहुत अधिक छाया हुआ है। अभी भी करोड़ों लोग निरक्षरता की श्रेणी में हैं। रहने को निरक्षरता खत्म करने के लिए अभियान तो बड़े चलाए गए, लेकिन ऐसे कार्यक्रमों पर अरबों रुपए खर्च करने के बाद भी अपेक्षित नतीजे नहीं निकले। निराशाजनक साक्षरता दर का मुख्य कारण स्कूलों का भी पर्याप्त नहीं होना रहा है। न केवल सरकार, बल्कि हर शिक्षित व्यक्ति को निरक्षरता के उन्मूलन को व्यक्तिगत लक्ष्य के रूप में स्वीकार करने की जरूरत है। सभी शिक्षित व्यक्तियों द्वारा किया गया हर एक प्रयास इस खतरे से निजात में सहयोग कर सकता है।
’भरत यादव, बीएचयू
मरते लोग, सोई सरकार
आपके अखबार के मार्मिक संपादकीय ‘आपराधिक लापरवाही’ में उस संवेदनाविहीन आधुनिक शासन व्यवस्था के विभिन्न निकायों की लापरवाही का स्पष्ट विश्लेषण किया गया है जिसने दशहरे के दिन अमृतसर में इकसठ लोगों की जान ले ली। सही है, अगर सरकार, स्थानीय प्रशासन, पुलिस, नगर निगम, रेलवे, रामलीला कमेटी आदि में से एक भी विभाग या संस्था अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करती तो इतने निर्दोषों की जान नहीं जाती! सबसे अफसोस और शर्म की बात तो यह है कि इतने बड़े हादसे में जहां पूरा देश सदमे और शोक के सागर में डूबा था, वहीं राज्य का मुख्यमंत्री अपनी गहरी कुंभकर्णी नींद में पड़ा था और इतने बड़े हादसे की सूचना मिलने के बाद भी पूरे बारह घंटे बाद अमृतसर पहुंचा। अमृतसर जिला प्रशासन कह रहा है कि हमें सूचना नहीं दी गई और रेलवे भी यही कह रहा है। क्यों न इन सभी संबंधित विभागों के अफसरों पर हत्या का मुकदमा चले?
’निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद।