इससे बड़ी विडंबना और शर्मनाक स्थिति क्या होगी कि जो बालिका गृह बेघर बेसहारा बच्चियों का ठिकाना कहा जाता है वही उनके लिए नर्क बन जाए! बिहार के मुजफ्फरपुर में सरकारी मदद से चलने वाले बालिका गृह में बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया गया। वहां रह रही 42 बच्चियों में से 29 के साथ न सिर्फ बलात्कार किया जाता था बल्कि इसका विरोध करने पर उन्हें बुरी तरह पीटा जाता था। यह खुलासा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस जैसी संस्थान ने इस बालिका गृह के सोशल ऑडिट में किया है। तो क्या अब देश में सरकारी संस्था या सरकारी मदद से चलने वाली संस्थाओं में भी लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं? बालिका गृह के संचालक, प्रशासन और संबंधित महकमे के लोग आखिर इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं कि इतने वक्त से बालिका गृह में रह रही बच्चियों का यौन शोषण होता रहा और उन्हें कानों कान खबर तक नहीं लगी?
बालिका गृह की देख-रेख के लिए पूरी व्यवस्था होती है। समाज कल्याण विभाग के पांच अधिकारियों से लेकर वकील और सामाजिक कार्य से जुड़े लोग होते हैं। एक दर्जन से ज्यादा लोगों की निगरानी में 29 बच्चियों के साथ बलात्कार कैसे होता रहा? यह न सिर्फ प्रशासन की भयंकर लापरवाही को उजागर करता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि बिहार के सरकारी तंत्र में घुन लग चुका है जो अपराध पर लगाम लगाने में हर मोर्चे पर विफल है।
पिछले कुछ समय में राज्य में आपराधिक घटनाएं जिस तेजी से बढ़ी हैं उससे सरकारी दावों की पोल खुल जाती है। मुजफ्फरपुर की घटना से नेता, पुलिस, अफसर, अधिकारियों का घिनौना गठजोड़ सामने आया है। ऐसे सुगठित तंत्र की सख्त दरकार है जिसकी देखरेख में बेघर और बेसहारा लड़कियां बालिका गृह में सुरक्षित महसूस कर सकें।
’रोहित झा, पालम, नई दिल्ली</strong>