जब लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होते हैं तो राजनीतिक दल अपने घोषणापत्रों में चावल, साड़ी, रंगीन टीवी, अनाज, लैपटॉप, साईकिल आदि सामान मुफ्त देने का वादा करके मतदाताओं को लुभाने की खुलेआम कोशिश करते हैं। इसके साथ ही मतदाताओं को शराब, मांस, कपड़े और नकद पैसे देकर उनके वोट ‘खरीद’ कर जीतने वाले ‘माननीय’ सदन में भ्रष्टाचार के विरोध में भाषण देते नजर आते हैं। हकीकत यह है कि चुनाव आयोग ने सांसद उम्मीदवार के प्रचार के लिए खर्च की जो सीमा तय की है उतने पैसे से तो पार्षद का चुनाव भी नहीं जीता जा सकता।

हाल में राज्यसभा चुनाव की तैयारियों की बीच विधायकों की बोली लगाने और खरीद-फरोख्त की खबरें बहुत दुखद रही हैं। क्या विधायकों को खरीद कर राज्यसभा में जाने वाले सांसद जनता की आवाज बन पाएंगे? वे लोग कैसे भ्रष्टाचार विरोधी कानून बना पाएंगे? पिछले दिनों उत्तराखंड में भी विधायकों की खरीद-फरोख्त की खूब चर्चा हुई है। हमें समझना चाहिए कि जो जनप्रतिनिधि पैसे लेकर किसी के लिए मतदान करता है, मौका मिलने पर पैसे के लिए वह कुछ भी गलत कार्य कर सकता है। हमारे विधायक और पार्षद जब मतदान करके किसी सांसद, महापौर और अन्य परिषद अध्यक्ष जैसे पदों के लिए चुनाव करते हैं तो जम कर खरीद-फरोख्त होती है। यह समस्या कोई नई नहीं है लेकिन चिंता की बात है कि यह कम होने के बजाय लगातार बढ़ रही है।

इसी लेन-देन का नतीजा है कि आज लोकसभा में चौंतीस फीसद सांसदों पर कोई न कोई मुकदमा चल रहा है। राज्यसभा में यह आंकड़ा पंद्रह फीसद से ज्यादा है क्योंकि जब मतदान होता है तो हम व्यक्ति के गुणों को नहीं बल्कि उम्मीदवार द्वारा दिए जा रहे प्रलोभनों को ध्यान में रखते हैं और मतदान करते हैं। राज्यसभा चुनाव के समय भी जब प्रलोभनों का दौर चलने लगा तो व्यक्ति के अपराध गौण हो जाते हैं। आजकल तो राजनीतिक दलों द्वारा आपराधिक छवि के लोगों को टिकट देना और अपने महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करने का एक चलन-सा हो गया है। जो लोग आपराधिक छवि के होते हैं उन्हें क्षेत्र के सभी लोग जानते हैं। इसी कारण आजकल उम्मीदवारों को अपने गृह क्षेत्र से अलग दूसरी जगह से लड़ाया जाता है और लोकसभा चुनाव में तो अब दूसरे राज्य से चुनाव लड़ा जाता है जहां उसे कोई जानता न हो।

हमें एक सजग प्रहरी की तरह चुनाव से पहले अपने उम्मीदवार के बारे में पूरी जानकारी लेनी चाहिए और चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि पर लगातार नजर रखनी चाहिए। अगर वह कोई भी अनैतिक कार्य करता है तो अगली बार उसे वोट नहीं देना चाहिए। राजनीतिक दलों के भरोसे अब हमें नहीं रहना चाहिए क्योंकि वे तो खुद इसे बढ़ावा देने में लगे हैं। इस समस्या का अंत उस दिन होगा जब मतदाता बिना किसी लालच के मतदान केंद्र तक जाएगा और व्यक्ति के गुणों को देख कर अपना कीमती मत डालेगा।
’सूरज कुमार बैरवा, सीतापुरा, जयपुर</p>