कोई विद्यार्थी एमफिल या पीएचडी क्यों करता है? आजकल के जमाने में डिग्रियों को सजा कर दुनिया को दिखाने के लिए तो बिल्कुल नहीं। उनका उद्देश्य भी एक सम्मानजनक नौकरी पाना और अच्छा जीवन जीना होता है। मगर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के ताजा सर्कुलर ने उच्च शिक्षित और शोधरत युवाओं के एक बड़े तबके को बुरी तरह निराश किया है।
एमफिल-पीएचडी करने वाले वे लोग होते हैं जो डॉक्टर-इंजीनियर नहीं बनते या सिविल सेवा जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के मोह में नहीं पड़ते। इन सब सुख-सुविधाओं वाले कॅरियर को किनारे रख शोध करते हैं। शोध करते-करते उनकी उमर भी अधिक हो जाती है जिससे वे कोई अन्य काम करने के लायक नहीं रह जाते। ऐसे जोखिम उठाने वालों को सरकार एक सम्मानजनक नौकरी की गारंटी भी नहीं दे सकती तो बड़ी पीड़ा पहुंचती है। इतिहास में कोई भी देश अपनी जीडीपी ग्रोथ और ढांचागत विकास से ज्यादा बौद्धिक प्रगति के लिए ही जाना जाता है।
ऐसे में एडहॉक टीचर्स के बहाने शोधार्थियों के भविष्य पर हमला कर बौद्धिकता को कुंद कर डालना एक लोक-कल्याणकारी राज्य में कहीं से उचित नहीं है। प्रधानमंत्री यथाशीघ्र दखल दें और शिक्षामंत्री हकमारी रोकें। दिल्ली विश्वविद्यालय में रिक्त पांच हजार पदों को भरते हुए अन्य विश्वविद्यालयों में भी खाली पदों पर नई नियुक्तियों को हरी झंडी दें।
अंकित दूबे, जेएनयू, दिल्ली