अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस द्वारा हाल ही में जो स्वतंत्रता की सूची जारी की गई है, व न तो चोंकाने वाली है और न ही पूरी तरह सही, क्योंकि इसमें देश की रैंकिंग स्वतंत्र से घटा कर आंशिक रूप से स्वतंत्र कर दी गई है। माना कि देश मे पिछले कुछ सालों में अभिव्यक्ति और सूचना के कई क्षेत्रों की स्वतंत्रता कम हुई है, लेकिन आज भी कुछ मीडिया हाउस अच्छी और सच्ची पत्रकारिता कर रहे हैं। हो सकता है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर कुछ पहरे बढ़े हैं, पर यह भी सच है कि आज भी कुछ लोगों ने अपने कर्तव्य से समझौता नहीं किया है।
दरअसल, अमेरिकी संस्था की हालिया रिपोर्ट के कई पैमाने हैं। उन पर गौर करने की जरूरत है, साथ ही सोचने की भी। आज सच की आवाज के दमन के लिए जिस प्रकार राजद्रोह के मुकदमे लाद दिए जा रहे हैं, वह सरकार की छवि को नुकसान पंहुचा रहा है। एक लोकतंत्र में जनता की आवाज को सुनना बहुत लाजिमी है। यह आवाज ही सरकार को दिशा देती है। जब जनता की सुनी जाती है तो उस सरकार की उम्र अपने आप बढ़ जाती है।
आज बहुत आवश्यक है कि जनभावनाओं की कद्र की जाए, उनको सुना जाए, चाहे वह किसान हो या बेरोजगार। युवा देश की प्रगति में सबकी हिस्सेदारी है। जितना हम सबको साथ लेकर चलेंगे, उतना ही देश में सुख और शांति बढ़ेगी। फिर हमें किसी बाहरी रिपोर्ट पर ज्यादा फिक्र करने की जरूरत नहीं रहेगी। देश का संविधान इतना अधिकार सबको देता है कि वह अपनी आवाज उठा सके और एक लोकतांत्रिक सरकार का कर्तव्य है कि वह जनमत का सम्मान करे।
’मुनीश कुमार, भिवानी, हरियाणा