वर्तमान में लोगों के भीतर संवेदनहीनता का भाव इस कदर बढ़ रहा है कि वे खुद ही भविष्य के खतरों की जद में डाल रहे हैं, लेकिन उन्हें पता चल पा रहा है। जल प्रदूषण और संसाधनों के प्रति हम आखिर क्यों अनजान बने रहना चाहते हैं। क्या इतनी संवेदना भी हम में नहीं है कि जिन चीजों की आवश्यकता है, वे दूसरों की जरूरत भी हो सकती हैं, यह समझ सकें! यह हमारा दायित्व है कि हम न सिर्फ उन्हें कागज के टुकड़े देकर कहें कि यह हमारी विरासत है, बल्कि विरासत को बचाने के भी जतन करें। स्वच्छ जल और वायु ही किसी भी चीज को बचाने के सबसे अहम स्रोत हो सकते हैं।
’प्रीति देवी, दिल्ली विवि