कुरान और शरीयत का सहारा लेकर पुरुष अब तक मुसलिम महिलाओं को दोयम दर्जे पर रखते आ रहे हैं। लेकिन तीन तलाक को चुनौती देते हुए मुसलिम महिलाएं अब खुलकर सामने आ रही है। शायरा बानो और आफरीन ने इस कानून के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर हाईकोर्ट ने कहा कि तीन तलाक महिलाओं से क्रूरता है, इससे न्यायिक अंतरात्मा परेशान है और कोई भी कानून संविधान से बड़ा नहीं हो सकता है।

हाईकोर्ट का यह फैसला मुसलिम महिलाओं में एक नई उम्मीद की किरण को जगाती है। हालांकि हाईकोर्ट के इस फैसला अंतिम नहीं है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम माना जाएगा। लेकिन आॅल इंडिया मुसलिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाईकोर्ट की टिप्पणी की सराहना की है। धर्म के नाम पर डरा कर हमेशा महिलाओं को ही पीछे धकेला जाता है, चाहे वह तलाक से जुड़ा हुआ हो या जियारत से। अब हर धर्म के ठेकेदारों को समझना होगा की महिलाओं का शोषण धर्म के नाम पर बंद हो।
’विनीता मंडल, इलाहाबाद