एक और गांधी!
इस देश में बहुत-से होंगे जो भाजपा की सदस्य नहीं हैं और वे मोदीजी की अनेक नीतियों से सहमत भी नहीं होंगे। लेकिन वे मोदीजी की कर्मठता, दृढ़ प्रतिज्ञा, दूरदर्शिता आदि के कायल होंगे। मगर अफसोसनाक है कि उन्हीं की पार्टी के कुछ लोग उनके लिए हर समय मुसीबत खड़ी करने के लिए तैयार रहते हैं। अब अखबार में पढ़ा कि संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने कहा है, ‘हमारा सौभाग्य है कि एक प्रेरणा की तरह आज हमारे बीच पीएम के रूप में एक और गांधी मौजूद है।’
अब जो मोदीजी के प्रशंसक हैं, उनके लिए इसका कोई अर्थ नहीं है क्योंकि वे तो पहले से ही मोदीजी के ‘भक्त’ हैं और जो मोदीजी की नीतियों के विरोधी हैं उन पर भी इसका उलटा ही प्रतिक्रियात्मक प्रभाव पड़ेगा।
कभी कहा गया था ‘इंदिरा इज इंडिया’। देश की जनता ने पांच साल के लिए मोदीजी को चुना है। उनका कार्यकाल दो वर्ष शेष है। अच्छा हो कि मोदीजी के सहयोगी इस तरह की बयानबाजी से बचें।
’लक्ष्मी नारायण मित्तल, मुरैना
जातीय राजनीति
नव निर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की योग्यता और कार्यकुशलता पर किसी को कोई शक नहीं है। लेकिन अपने राजनीतिक लाभ के लिए कुछ भाजपा नेताओं द्वारा कोविंदजी के नाम के आगे बार-बार दलित शब्द का इस्तेमाल कर उन्हें एक दलित राष्ट्रपति के तौर पर पेश किया जा रहा है। इससे इस गरिमा पूर्ण पद की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। आश्चर्य की बात है कि केवल विकास के नाम पर भारी बहुमत के साथ सत्ता में आए मोदीजी नेतृत्व वाले राजग के लिए भी खुद को परंपरागत ओछी और जातीय राजनीति से बचाना मुश्किल हो रहा है।
इससे सिद्ध होता है कि जिस विकास के एजेंडे के साथ जनता का दिल जीत कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर काबिज हुई थी उस पर अब उसे खुद भरोसा नहीं रहा इसीलिए 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी सत्ता बचाने के लिए जातीय समीकरण साधने का प्रयास कर रही है। यह सर्वथा अनुचित है। कोविंदजी को केवल एक दलित के रूप में पेश करना उनकी योग्यता और कार्यकुशलता पर प्रश्नचिह्न लगाने जैसा है।
’अमित कुमार पाठक, गोंडा, उत्तर प्रदेश</p>