रियो ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में एक भी स्वर्ण पदक न पाने वाले भारत को रियो में 18 सितंबर, 2016 में संपन्न ग्रीष्म पैरालंपिक खेलों में दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक हासिल हुआ है। निस्संदेह अपने दिव्यांग खिलाड़ियों की इन उपलब्धियों पर पूरे देश को गर्व है। मगर यह भी कड़वा सच है कि हम लोग पैरालंपिक खेलों को ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों जितनी तरजीह नहीं देते हैं। फलस्वरूप, हम लोग यह भी नहीं जानते कि इन खेलों में हमारी वास्तविक स्थिति क्या है। भारत में लगभग दो करोड़ दस लाख लोग दिव्यांग हैं, जबकि चीन में आठ करोड़ तीस लाख यानी भारत से चार गुना लोग दिव्यांग हैं। हमें रियो पैरालंपिक में दो स्वर्ण मिले हैं तो चीन को बारह-चौदह मिलने चाहिए, लेकिन स्थिति ऐसी नहीं है।

चीन को 107 स्वर्ण, 81 रजत और 51 कांस्य यानी कुल मिलाकर 239 पदक हासिल हुए हैं। इसके बाद पदक तालिका में ब्रिटेन है, जिसे 64 स्वर्ण, 39 रजत और 44 कांस्य यानी कुल मिलाकर 147 पदक मिले हैं। दरअसल, यहां भी हम पदक तालिका में तैंतालीसवें नंबर पर हैं और दुनिया के कई ऐसे देश, जिनकी जनसंख्या दिल्ली के बराबर है, हमसे कहीं आगे हैं। भारत में खेलों से जुड़े अधिकारी खुश हैं कि कम से कम पैरालंपिक खेलों ने उनकी नाकामियों पर पर्दा डाल दिया है, लेकिन वे भूल रहे हैं कि इस तरह की उपलब्धियों के सहारे हमें अपने लोगों को बेवकूफ नहीं बनाना चाहिए। इतना जरूर है कि जिन दिव्यांग खिलाड़ियों ने अपने बलबूते इन पैरालंपिक खेलों में भारत का नाम रोशन किया है, उनकी पीठ हम सभी को जरूर थपथपानी चाहिए।
’सुभाष चंद्र लखेड़ा, द्वारका, दिल्ली