खबरों के मुताबिक इलाहाबाद में बोड़ीपुर धरौता गांव में गरीबी से जूझ रहे दलित युवक धमेंद्र की मौत हो गई। गांव वालों का कहना था कि तीस वर्षीय धर्मेंद्र शहर में रिक्शा चला कर और कभी-कभी नृत्य मंडली में अभिनय कर परिवार का पालन-पोषण कर रहा था। वह पिछले कुछ महीनों से बीमार था, जिससे उसकी आमदनी बंद हो गई थी। गांव वालों के मुताबिक उसके घर में अनाज का एक भी दाना भी नहीं था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि भूख की वजह से उसकी मौत हुई है।
ताजा विश्व भूख सूचकांक या ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) के अनुसार भारत की स्थिति अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और चीन से बदतर है। यह सूचकांक हर साल अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आइएफपीआआइ) जारी करता है, जिससे दुनिया के विभिन्न देशों में भूख और कुपोषण की स्थिति का अंदाजा लगता है। आज दुनिया के केवल इक्कीस देशों में हालात हमसे बुरे हैं। विकासशील देशों की बात जाने दें, हमारे देश के हालात तो अफ्रीका के घोर गरीब राष्ट्र नाइजर, चाड, सिएरा लिओन से भी गए गुजरे हैं। पूरी दुनिया में भूख के मोर्चे पर पिछले पंद्रह बरसों के दौरान उनतीस फीसद सुधार आया है। लेकिन भुखमरी सूचकांक में भारत और नीचे खिसक गया है। सन 2008 में वह तिरासीवें नंबर पर था। 2016 आते-आते वह सत्तानबेवें स्थान पर आ गया। तब जीएचआइ में कुल छियानबे देश थे, जबकि अब उनकी संख्या बढ़ कर 118 हो गई है।
हर एक वोटर के लिए बिना गरीब और अमीर का भेदभाव किए न्यूनतम आय सुनिश्चित की जानी चाहिए। इस बारे में समय रहते देश में जनमत कराके यह जानना चाहिए कि आम जनता की क्या राय है? देश के असली मालिक वोटर और उसके परिवार को भी स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार है। मतदान करने की न्यूनतम आय की इस धनराशि को गरीब और अमीर दोनों को स्वाभिमान के साथ लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए। जब प्रकृति अमीर-गरीब का भेदभाव नहीं करती है तो मानव निर्मित अमीर-गरीब का भेदभाव करने वाले हम कौन होते हैं? हरेक मनुष्य का जीवन अनमोल है। चिकित्सकों की एक शोध में इस मानव शरीर की भौतिक कीमत करोड़ों रुपए में आंकी गई है। जन्म पर हमारा कोई अधिकार नहीं है।
सम्मानपूर्वक जीने का हरेक वोटर का जन्मसिद्ध अधिकार हो, इसके लिए कानून बनाना चाहिए। सरकार हमेशा वोटर को रोजगार और जमीन नहीं दे सकती। किसी परिवार के चार भाइयों में भैंस को बराबर-बराबर नहीं बांटा जा सकता है। लेकिन भैंस के दूध को बराबर-बराबर बांटा जा सकता है। इसी तरह देश की जमीन और रोजगार को हर वोटर में बराबर नहीं बांटा जा सकता। लेकिन सभी के लिए सरकार साधारण और सम्मानपूर्वक जीने के लिए न्यूनतम आय सुनिश्चित कर सकती है।
’पीके सिंह पाल, लखनऊ</p>