बंगलुरु की घटना ने फिर देश को झकझोर दिया है। सोशल साइट पर विरोध में टिप्पणियों की बाढ़-सी आ गई। लोग ऐसी दूषित मानसिकता वालों को सजा देने की मांग कर रहे हैं। अच्छा लगा कि लोग इतने सजग हैं। लेकिन जितनी सजगता सोशल साइट्स पर, कैंडिल मार्च, धरना देकर दिखाई जाती है अगर उतनी सजगता सड़कों पर लड़कियों को लड़कों की ओछी-अभद्र हरकतों से बचाने में दिखाई जाती तो कोई निर्भया, दामिनी या किसी की बेटी न मरती और न यौन अपराधों की शिकार होती। इन दूषित मानसिकता वालों को उनकी पहली ही नीच हरकत पर घर-परिवार, आस-पड़ोस, दोस्त और समाज सबक सिखाते तो इनकी हिम्मत नहीं बढ़ती ऐसी नीचता करने की। इन कुकृत्य करने वालों से अधिक दोषी वे आंखें हैं जो गलत देख कर भी दूसरी तरफ मुड़ जाती हैं, वे होठ हैं जो इज्जत के नाम पर खुलते ही नहीं। वह सोच है जो ऐसी घटनाओं पर लड़कियों को ही दोषी ठहराती है। वह समाज है जो ऐसे लोगों को पनाह देता है। कोई भी विरोध जताने से पहले झांक लेना मन में कि कहीं आप भी वे दोषी आंखें, होठ और मानसिकता तो नहीं जो ऐसे कुकृत्य का हिस्सा रहे हो? अगर ऐसा है तो क्या लाभ झूठा दिखावा करने का? पहले खुद के भीतर के अपराधी को सजा दो, जिसने किसी के ओछेपन पर विरोध नहीं किया। तब शायद बदलाव आए।

यह मत कहना कि शिक्षा का अभाव ऐसी मानसिकता को जन्म देता है। बिलकुल भी नहीं। महज डिग्री पाने से मानसिकता नहीं बदलती है। अक्सर शिक्षितों के मुंह से भी समाज में लड़कियों की स्थिति कमतर साबित करने वाले वाक्य सुनने को मिल जाते हैं। मुझे अक्सर अपने आस-पास लोग कहते मिल जाते हैं कि लड़कियों के पास दिमाग कम होता है, उनका दिमाग घुटने में होता है। ऐसे लोगों से बस इतना कहना चाहूंगी कि जीवविज्ञान में फिसड्डी तो हो ही, अपने दिमाग के मामले में भी फिसड््डी हो। ऐसा कह कर तुम अपनी श्रेष्ठता साबित करके झूठी तसल्ली दिल को देते रहो। पर ऐसा नहीं है। शताब्दियों से लड़कियों को दबाया जाता रहा है इस पुरुष प्रधान समाज में, फिर भी हर क्षेत्र में उनकी उपलब्धियां पुरुषों के बराबर या ज्यादा हो सकती हैं, कम तो नहीं है। यह साबित करता है कि दिमाग उनका कम है जो लड़कियों को पुरुष से कम समझते हैं। स्त्रियां भी ‘अकीरा’ फिल्म की अकीरा जैसी, ‘दंगल’ की गीता फोगट जैसी मानसिक-शारीरिक रूप से मजबूत बन सकती हैं। बलवान वह नहीं होता जो सिर्फ शरीर से बलवान हो, असली बलवान इंसान मन से होता है। खुद को कमजोर मत समझना। तुम उतनी ही ताकतवर हो जितनी रानी लक्ष्मीबाई थी, बस अपने अंदर के डर को खत्म करने की जरूरत है। तभी असली बदलाव होगा, तभी ऐसे कुकृत्य बंद होंगे।
’रोमा रागिनी, माखनलाल विश्वविद्यालय, भोपाल</p>