राजधानी से चलने वाली अधिकतर ट्रेनें इसके समीपवर्ती राज्यों से होकर गुजरती हैं। अभी कुछ दिन पहले एक काम के चलते मुझे भी इसमें सफर करने का मौका मिला। मैंने पैसेंजर कही जाने वाली ट्रेन का टिकट खरीदा और उसमें जैसे-तैसे सवार हो लिया। कुछ दूर चलने के बाद ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी। तभी एक महानुभाव जो अपने को ‘दूधिया’ बता रहे थे; ने अपने दूध के ड्रम ट्रेन के दरवाजे पर सटा दिए। प्लेटफार्म पर खड़े यात्री उनसे इन ड्रमों को हटाने का अनुरोध करते रहे लेकिन महानुभाव ने उनकी एक न सुनी ।

अब ट्रेन चल पड़ी थी और भागने में अक्षम दो बुजुर्ग महिलाएं प्लेटफार्म पर ही खड़ी रह गर्इं। अभी तक मुझे बैठने के लिए सीट नहीं मिल सकी थी, जिसे पाने की कोशिश करते हुए मैं कुछ आगे बढ़ा तो पाया कि कुछ लोग बीच रास्ते में ‘पत्ते’ खेल रहे थे। उनमें से एक महोदय पत्तों के साथ ही बीड़ी का भी सुख प्राप्त कर रहे थे, जबकि पास बैठे एक अन्य अधेड़ उनके खेल को देखने से साथ-साथ क्षेत्रीय बाला का नृत्य भी अपने मोबाइल के माध्यम से देख रहे थे। मैंने उनसे आगे निकलने के लिए रास्ता छोड़ने का निवेदन किया। इस पर उनमें से एक व्यक्ति में मुझे धमकाते हुए चुपचाप अपनी जगह खड़े रहने का आदेश दे डाला। उसके लहजे को देखते हुए मैंने चुप रहना ही मुनासिब समझा ट्रेन कुछ और आगे बढ़ बढ़ चुकी थी और एक दरवाजे पर खड़े दूधिया से लोहा लेते हुए अंदर दाखिल हो चुका था। अब उसने अपनी नौजवानी का परिचय देते हुए पत्ते खेल रहे लोगों से रास्ता छोड़ने और बीड़ी बुझाने के लिए कहा। जवाब में उनमें से एक व्यक्ति ने पहले तो उस नौजवान को घूरा और फिर दोनों के बीच जुबानी जंग छिड़ गई। जुबानी जंग को हाथापाई में तब्दील होते देर नहीं लगी। इसी बीच पत्ते खेल रहे सभी युवक एकजुट होकर उसे धकेलते हुए दरवाजे तक ले गए। अब तक ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा दूधिया भी इनके साथ हो लिया था। सबने मिलकर उस नौजवान को ट्रेन से बाहर धकेल दिया और ट्रेन में उपस्थित सभी युवकों को चुप रहने का आदेश दिया, जंजीर खींची और खेतों के रास्ते आंखों से ओझल हो गए। एक व्यक्ति ने फोन करके पुलिस को बुला लिया। पुलिस ने नौजवान के शव को बरामद कर लिया और अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज कर छानबीन करने चली गई।

ऐसी ही एक वारदात कुछ दिन पूर्व एक टिकट निरीक्षक के साथ तब घटित हुई जब वे यात्रियों का टिकट चेक कर रहे थे। टिकट मांगने पर उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी। तब भी पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। सवाल है कि आखिर कब तक ट्रेनों में ऐसी गुंडागर्दी चलती रहेगी और पुलिस इन अज्ञात लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से बचती रहेगी ।
’कन्हैया जादौन, जामिया, दिल्ली</p>