रक्षक बनाम भक्षक
इसे विडंबना ही कहा जाना चाहिए कि महिला यौन शोषण की घटनाओं या भीड़ की हिंसा के मामलों में वे सरकारी एजेंसियां भी कहीं अधिक दोषी नजर आ रही हैं जिन पर कानून को लागू करने की महती जिम्मेदारी है। बिहार के मुजफ्फरपुर के सुधार गृह में 29 बालिकाओं के साथ बलात्कार की पुष्टि होने का मामला हो या राजस्थान के अलवर में भीड़ द्वारा पीटे गए रकबर नामक युवक की पुलिस हिरासत में कथित पुलिस पिटाई से मृत्यु का, दोनों मामलों में कानून के रक्षक ही भक्षक बनते नजर आ रहे हैं। मुजफ्फरपुर में सरकार द्वारा संचालित बालिका गृह नारी निकेतन में रहने वाली बालिकाओं के यौन शोषण का मामला तब प्रकाश में आया जब टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस कीसोशल ऑडिट रिपोर्ट में बालिका गृह की कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए गए। इसके बाद जब बालिकाओं को स्वास्थ्य परीक्षण के लिए ले जाया गया तो डरी-सहमी बालिकाओं में से एक ने इस चौंकाने वाले घिनौने कृत्य का पर्दाफाश किया।
बालिकाओं ने अपने बयान में बताया कि यहां से उन्हें नेताओं और अधिकारियों के घर भेजा जाता है। डरा धमका कर उनका यौन शोषण किया जाता है। मुंह खोलने पर मारपीट कर हत्या तक कर दी जाती है। एक बालिका के विरोध करने पर उसे मार कर बालिका गृह के परिसर में ही दफना दिया गया। उल्लेखनीय है कि सुधार गृह में रहने वाली बालिकाएं न तो अपराधी हैं न अस्वस्थ। वे या तो अनाथ हैं या किसी अन्य द्वारा उनके साथ की गई किसी आपराधिक ज्यादती के बाद बतौर ऐहतियात सुरक्षा के लिए उन्हें यहां रखा गया है। यह प्रकरण उजागर होने के बाद भले ही पुलिस ने जांच शुरू कर दी हो लेकिन सवाल उठना लाजमी है कि जिन सरकारी संस्थाओं में बालिकाओं को सुरक्षा और सुधार के लिए लाया जाता है यदि वहीं वे सुरक्षित नहीं हैं और उनके साथ शर्मसार कर देनी वाली ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है तो देश में बालिकाएं और महिलाएं अपनी आबरू बचाने आखिर जाएं तो कहां जाएं?
भीड़ की हिंसा में कानून के रखवालों की लापरवाही की इसी तरह की एक अन्य घटना अलवर की है जो ऊपर से तो भीड़ की पिटाई का मामला लगती है लेकिन निकट से पड़ताल करने पर इसमें पुलिस की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है। घटना पर गौर करें तो रकबर नामक एक युवक की आशंका के चलते भीड़ द्वारा पिटाई की जा रही थी तभी पुलिस के वहां पहुंचने पर भीड़ भाग गई। पुलिस रकबर को जीवित अवस्था में अपने साथ ले आई। उसे सीधे अस्पताल ले जाने के बजाय इधर-उधर घुमाती रही और कथित रूप से उसकी पिटाई की गई जिससे उसकी मृत्यु हो गई। परिजनों का आरोप है कि रकबर की मृत्यु भीड़ द्वारा पिटाई से नहीं बल्कि पुलिस हिरासत में उसकी पिटाई और समय पर इलाज न मिलने के कारण हुई है। सच्चाई क्या है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन ये दोनों घटनाएं सरकारी एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। जब कानून के रक्षक और परिपालक ही इस तरह कानून का भक्षण करेंगे तो आम आदमी का जीवन कैसे सुरक्षित रह पाएगा?
’देवेंद्र जोशी, महेशनगर, उज्जैन
आरक्षण का आधार
संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर ने केवल दस बरस के लिए आरक्षण की सलाह दी थी लेकिन राजनीतिक स्वार्थों के चलते यह सत्तर साल बाद भी जारी है। कभी राजस्थान में गुर्जर तो गुजरात में पटेल-पाटीदार, कभी हरियाणा में जाट तो कभी महाराष्ट्र में मराठा और कभी देश के अन्य भागों में जातिगत आरक्षण की मांग उठाने लगती है। इसके परिणामस्वरूप सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण कुछ शहरों में आगजनी व आत्महत्या की घटनाएं हो गर्इं। आरक्षण की मांग को लेकर या आरक्षण के विरुद्व कहीं आंदोलन शुरू होता है तो उसमें जानमाल के भारी नुकसान के साथ ही, सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। आखिर सरकारें आरक्षण के इस गंभीर मसले पर वोटों की राजनीति से ऊपर उठ कर गहनता से विचार क्यों नहीं कर पा रही हैं? सरकार सभी को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने पर चर्चा क्यों नहीं करती है?
’शकुंतला महेश नेनावा, गिरधर नगर, इंदौर</strong>