अपने लेख ‘मानसिकता पर सवाल’ (12 जुलाई) में तवलीनजी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय बनाने का विचार प्रस्तुत किया है। उन्हें यह भी बताना चाहिए कि क्या नाम बदल देने से कार्य भी बदल जाएगा? मानव संसाधन निश्चित रूप से एक बड़ी संकल्पना है, जो मानव के शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास का द्योतक होती है।

मुझे तो यह नाम ही ठीक लगता है। केवल नाम बदल लेने से काम नहीं बदल सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि अच्छे सोच-समझ वाले लोगों को ही उच्च शैक्षणिक पदों पर बिठाना चाहिए ताकि वे एक बेहतर भारत का निर्माण कर सकें, चाहे वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय हो या कोई अन्य।

पंडित नेहरू की मानसिकता पर प्रश्न करने वाले लोगों को यह चाहिए कि भारत की इस थाती को गंगा-जमुनी ही रहने दें, इसे हिंदू-मुसलिम, सिख-ईसाई करके न बांटें। बदलाव स्वयं से शुरू होता है अतीत अगर कष्टदायक हो तो उससे बाहर आना ही बेहतर है, क्योंकि आगे हम विकास के पथ पर तभी बढ़ सकते हैं, जब हमारे देश में हिंदू-मुसलिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी सब धर्मों के लोग भारतीयता के एक सूत्र में पिरोकर आगे बढ़ेंगे।

हेमंत गुप्ता, लखनऊ

 

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