आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों के ज्ञान के लिए उच्च शिक्षा अधिक लाभकारी बनती जा रही है। उच्च शिक्षा पाए विषय-विशेषज्ञ अपने ज्ञान के आधार पर, राष्ट्र के उत्थान और विकास मे तेजी ला रहे हैं। विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई के दौरान दूसरे देशों की भाषा, संस्कृति, आचार-विचार पढ़ने और जानने के अच्छे अवसर प्राप्त हो रहे हैं। यों भी यह आज के समय की बड़ी मांग भी बनती जा रही है।
उच्च शिक्षा के माध्यम से छात्र अपनी रुचि के अनुसार विषय विशेष में योग्यता पाकर अपनी क्षमताओं के अनुसार बड़े से बड़े काम को कुशलतापूर्वक अंजाम दे रहे हैं। उच्च शिक्षा पाए लोग आज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों मे सफल नेतृत्व के साथ उत्तरोत्तर प्रगति भी कर रहे हैं। गर्व कराती ऐसी खबरें देखना और पढ़ना सभी भारतीयों को सुखद अहसास करवाता है।
उच्च शिक्षा के प्रति बढ़ते रुझान को देखते हुए सरकार कौशल आधारित शिक्षा को प्रोत्साहन देकर विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के प्रयास कर रही है। देश में लागू मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसी योजनाए शिक्षित युवाओं की काबिलियतों को देखते हुए उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए बनाई गई हैं।
उच्च शिक्षा पाए विद्यार्थी शिक्षा के बाद इन योजनाओं का लाभ लेते हुए स्व-रोजगार की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। तेजी से होते विकास के साथ दुनिया भर में हो रहे बदलाव को देखते हुए इन पाठ्यक्रमों को भी अद्यतन रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। शिक्षा पाठ्यक्रमों मे नियमित अद्यतन होते रहने से शिक्षा वाले विद्यार्थियों का दुनिया भर की ताजा गतिविधियों से जुड़े रहना आदत मे शामिल हो चुका है।
आजादी के बाद के सालों में देश भर में विश्वविद्यालयों और कालेजों में तेजी से वृद्धि के संकेत ये बात जाहिर करते हैं कि लोगों की उच्च शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ा है। ऐसे में इस बात की जरूरत है कि सरकार द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों मे व्याप्त नौकरशाही वाली संरचनाओं के उन्मूलन कर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के प्रयास निरंतर जारी रखे जाएं।
साथ ही शिक्षा के नाम पर आए दिन होने वाले फर्जीवाड़ों के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने के यथोचित कानून बनने चाहिए। स्कूल स्तर से विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के महत्त्व को समझाते हुए उन्हें पर्याप्त मदद और प्रोत्साहन दिए जाएं तो आने वाली पीढ़ियां और बेहतर सुनहरा कल लिखने मे सफल हो सकती हैं।
नरेश कानूनगो, देवास, मप्र।
हल का तकाजा
‘मणिपुर की चिंता’ (संपादकीय, 27 जून) पढ़ा। सभी पार्टियों की ठक मणिपुर के मुद्दे पर बुलाई गई थी, वह पहले ही हो जानी चाहिए थी, क्योंकि अब भी मणिपुर में हिंसा थमने का नाम ही नहीं ले रही है और मंत्री के घर पर आक्रमण हो जाते हैं। पुलिस से उनके हथियार लूटे जाते हैं। कायदे से देखें तो सरकार को सारी जिम्मेदारी लेनी चाहिए, क्योंकि वह अपने राज्य में शांति और कानून की स्थिति बनाए रखने में नाकाम रहे हैं।
जातीय तनाव बड़े लंबे समय से मणिपुर का हिस्सा रहे है। इसलिए समय की मांग यह है कि व्यापक समाधान की ओर ही सारे प्रयास होने चाहिए, क्योंकि आशंका है कि मणिपुर से यह हिंसा अन्य उत्तर-पूर्वी राज्य में भी यह हिंसा फैलने में देर नहीं लगेगी।
बाल गोविंद, सेक्टर-44, नोएडा।
महंगाई की रफ्तार
आज दिनोंदिन महंगाई इतनी बढ़ चुकी है कि आम आदमी का जीना मुश्किल हो चुका है। चाहे फिर शिक्षा पर महंगाई हो या अनाज पर। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने भी मान लिया है कि महंगाई बढ़ रही है। भारत में महंगाई के कारणों की बात करें तो डालर महंगा होने से भारत का आयात और महंगा होता जा रहा है और इससे घरेलू बाजार में चीजों के दाम भी बढ़ रहे हैं।
दूसरी ओर, इस बढ़ती महंगाई ने एक तरह से गरीबों का गला ही घोंट लिया है। हालांकि औद्योगिक और कारोबारी गतिविधियों में तेजी आने से रोजगार की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, पर वह अभी भी संतोषजनक नहीं है। साथ ही लोगों की आमदनी में बेहतरी नहीं आई है। ऐसे में महंगाई के दबाव से लोग अपनी जरूरतों में कटौती करने लगे हैं। इस वजह से बाजार में समुचित मांग नहीं है।
अगर हालात नहीं सुधरेंगे तो घटती मांग उत्पादन और वितरण पर नकारात्मक असर डाल सकती है। इससे अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी कुंद हो सकती है फिर बेरोजगारी भी बढ़ सकती है। बढ़ती महंगाई के दौर में गरीब अपना आमजीवन कैसे व्यतीत करें?
मोहिनी राणा, भिवाड़ी, राजस्थान।
बाजार बनाम खेत
कीमत के मामले में इन दिनों टमाटर फलों के राजा आम को भी मात दे रहा है। आमतौर पर टमाटर प्याज, लहसुन और अनेक प्रकार की सब्जियों के भाव में अप्रत्याशित कमी और वृद्धि कभी उत्पादकों को तो कभी उपभोक्ता को रुलाती रहती है। मौसम की मार और कीटाणु आदि के कारण उत्पादन में कमी ऐसे कारण हैं, जिससे सब्जियों के दाम प्रभावित होते हैं।
सब्जी बागवानी की फसल के दाम में कमोबेश हर वर्ष यही स्थिति रहती है। ज्यादातर किसान एक ही फसल की ओर अधिक आकर्षित होते हैं, जिससे भी दाम प्रभावित होते है। सरकार को किसानों को समन्वित बुआई के लिए समझाईश और प्रोत्साहन देना चाहिए। साथ ही इनके भंडारण की भी समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।
विमलेश पगारिया, बदनावर, धार।