कोरोना आपदा के बाद हमारे सामने कई तरह की चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं। इसमें सबसे बड़ी चुनौती आम जनता की रक्षा, सुरक्षा, पुनर्वास और विकास के नए मॉडल को लागू करने की है। विकास के नए मॉडल की जरूरत का पहला पडाव बढ़ती आबादी का नियंत्रण है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आबादी की तुलना में संसाधनों की बेहद कमी है। बढ़ती आबादी जिस प्रकार से उपलब्ध संसाधनों पर बोझ बनती जा रही है, उससे विकास पर काफी असर पड़ता है। इसका खामियाजा किसी अकेले देश को ही नहीं भुगतना पड़ता, बल्कि इसका प्रभाव एक व्यक्ति से लेकर संपूर्ण विश्व व्यवस्था पर पड़ता है।

विभिन्न अध्ययनों और वैश्विक आकलनों ने जनसंख्या वृद्धि को वर्तमान के भयावह चरण के रूप में रेखांकित किया है। किसी भी देश में जब जनसंख्या अनियंत्रित स्थिति में पहुंच जाती है और संसाधनों की भारी कमी देखने को मिलती है तो निश्चित तौर पर बड़ा असंतुलन बन जाता है। भारत में विकास की गति की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। संसाधनों के साथ-साथ क्षेत्रीय असंतुलन भी बढ़ता है. संसाधनों की सीमित उपलब्धता और जनसंख्या की अधिकता सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तनाव भी उत्पन्न करती है। विभिन्न क्षेत्रों में उपजी क्षेत्रवाद अवधारणा के पीछे भी कहीं न कहीं संसाधनों की मारामारी है।

जनसंख्या नियंत्रण को लेकर पिछले कुछ समय में बहस तेज हुई है। अब सरकार इस पर कानून बनाने की दिशा में भी प्रयास कर रही है। नीति आयोग ने भी इस पर अपने स्तर से नीतियों के प्रति सचेत प्रयास शुरू किया तो कई राज्यों ने भी इसकी जरूरत को रेखांकित करते हुए इस पर तेजी से काम करना शुरू किया है। जनसंख्या नियंत्रण आज केवल सरकार की जरूरत नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति इसके दुष्परिणामों से प्रभावित और चिंतित है।

बढ़ती आबादी का प्रभाव इस कदर है कि आज जहां चीन में प्रति मिनट ग्यारह बच्चे पैदा होते हैं, वहीं भारत में यह आंकड़ा तैंतीस बच्चों का है। इस आंकड़े के आधार पर माना जा रहा है कि अगले पांच साल में भारत विश्व की सर्वाधिक आबादी वाला देश हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी एक रिपोर्ट में माना है कि तीस वर्षों में विश्व की जनसंख्या में और दो अरब लोग जुड़ जाएंगे। भारत में जनसंख्या वृद्धि के आंकड़ों की बात करें तो आजादी के समय भारत की आबादी चौंतीस करोड़ थी जो 2011 की जनगणना में लगभग 121 करोड़ तक जा पहुंची थी। वर्ष 2018 तक यह आबादी लगभग 133 करोड़ से अधिक का था।

हालांकि बढ़ती आबादी को कई बार अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से एक लाभ के रूप में भी देखा जाता है। किसी देश में युवा और कार्यशील जनसंख्या की अधिकता और उससे होने वाले आर्थिक लाभ को जनसांख्यिकीय लाभांश के रूप में देखा जाता है। भारत में विश्व की सर्वाधिक युवा आबादी है। यदि इस आबादी का उपयोग भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने में किया जाए तो यह भारत को जनसांख्यिकीय लाभ प्रदान कर सकता है। लेकिन इस आबादी का आर्थिक लाभ लेने के लिए हमें गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, रोजगार के अवसर, स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा के साधन उपलब्ध कराने होंगे और इसके लिए उसी अनुपात में संसाधनों का भी खर्च भी करना पडेगा। ऐसे में कुल मिला कर बात संसाधनों के अनुपात में जनसंख्या वृद्धि पर आ जाती है।

भारत में वर्तमान स्थिति में युवा एवं कार्यशील जनसंख्या अधिक है, किंतु उसके लिए रोजगार के सीमित अवसर हैं। ऐसे में यदि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित न किया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है।
’गौरव कुमार, मयूर विहार-1, दिल्ली