प्रत्येक वर्ष अक्तूबर से लेकर जनवरी तक प्रदूषण उच्च स्तर पर रहता है, जिसके कारण दिल्ली, पंजाब समेत कई राज्यों में सांस लेना तक दूभर हो जाता है। इसके मुख्य कारक केवल पराली जलाना नहीं है, बल्कि इसके साथ-साथ उद्योग-धंधे, कल-कारखाने, र्इंट-भट्ठे और वाहनों से निकलने वाला धुआं है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर वातावरण में पीएम 2.5 कणों से वृद्धि हुई तो सांस से संबंधित संक्रमण का खतरा और बढ़ जाएगा।

इसलिए प्रदूषण के इन कारकों को आबादी से दूर स्थापित करना चाहिए। साथ ही किसानों को पराली को विघटित करने के अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए, ताकि मानव जीवन और उनका खुद का जीवन स्वस्थ और सुरक्षित रहे। इसके साथ ही बड़े उत्पादक राज्य होने के कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बनी रहनी चाहिए।
’मनकेश्वर महाराज ‘भट्ट’, मधेपुरा, बिहार</p>