जनसत्ता 25 सितंबर, 2014: फिलस्तीनी नागरिकों की जघन्य हत्याओं पर पूरे माहौल में व्याप्त चुप्पी को लेकर अपूर्वानंद ने ‘खामोशी के शिविर’ (10 अगस्त) में बहुत गंभीर और तीखे सवाल उठाए हैं। एक समय था जब फिलस्तीनी नेता यासिर अरफात हमारे गणतंत्र दिवस की परेड के राजकीय अतिथि हुआ करते थे और आज हमारी सरकार चुप है। इस चुप्पी का मतलब हम क्या समझें? कायरता, डर जाना, नवउदारवाद के फलस्वस्वरूप मरती हुई संवेदनाएं, बौद्धिक-राजनीतिक बौनापन, मरती हुई सामाजिक चेतना …? यह एकाएक नहीं हुआ। गुजरात में राज्य प्रायोजित नरसंहार के बाद चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के फिर सत्ता में आने के बाद से लगभग ऐसी ही चुप्पी, डर और शांति गुजरात में है। अब भाजपा देश की सत्ता पर काबिज है तो गुजरात सरीखी चुप्पी पूरे देश में पसर गई है।
किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि-‘आदमी मरने के बाद कुछ नहीं सोचता /आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता / कुछ नहीं सोचने और कुछ नहीं बोलने से भी आदमी मर जाता है।’ अपूर्वानंद मृत्यु की ओर अग्रसर होते जा रहे समाज की तस्वीर हमारे सामने पेश कर रहे हैं
श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल
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