पटना के नारायणी कन्या विद्यालय को हटाए जाने की सूचना ने जितना उद्वेलित नहीं किया उससे कहीं ज्यादा उस वजह ने चोट पहुंचाई जो इसे हटाए जाने की जड़ में है (हमसे स्कूल मत छीनो: निवेदिता / 3 फरवरी)। धार्मिक आस्था पर सहमति या असहमति संभव है पर जब धर्म का दुरुपयोग करते हुए (जाहिर है कि इसके पीछे वोट बैंक की राजनीति है) आजाद भारत की सबसे अनिवार्य जरूरत- शिक्षा के प्रसार- वह भी बालिकाओं के शिक्षा-प्रसार की, तो यह असहनीय हो जाता है।

मेरे दो सवाल हैं: पहला, क्या आज गुरु गोबिंद सिंहजी होते तो इसे पसंद करते? मेरा अटूट विश्वास है- हरगिज नहीं। दूसरा, जिन अतिथियों की सुविधा के नाम पर यह गंदी राजनीति की जा रही है, क्या खुद वे इसे सहर्ष मंजूर करना चाहेंगे? शायद एक भी अतिथि बिहार सरकार के इस निर्णय को पसंद नहीं करेगा। सरकार को इस पर पुनर्विचार करने की सख्त आवश्यकता है।

 

पुनर्विचार की दरकार

 

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