जनसत्ता 29 सितंबर, 2014: हमारे यहां दो तरह की प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। पहली स्थिति में परीक्षार्थी सीधे नौकरी के लिए जंग करते हैं, जबकि दूसरी ओर इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्रबंधन और उच्च शिक्षण संस्थान वाले क्षेत्र में प्रवेश के लिए जूझते दिखाई देते हैं। पर दुर्भाग्य की बात है कि जिस प्रवेश परीक्षा के सहारे काबिल लोगों की तलाश की जा रही है उसकी शुचिता पर ग्रहण लग चुका है। आए दिन प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक हो रहे हैं। जाहिर है देश भर में ऐसे शिक्षा माफियाओं का जाल फैल चुका है जिनकी ताकत का अंदाजा लगाना मुश्किल है।
अगर ऐसा नहीं होता तो एक के बाद एक प्रतियोगी परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक नहीं होता। ताज्जुब है कि शासन द्वारा परीक्षा की संवेदनशीलता और गोपनीयता के लंबे-चौड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन शिक्षा माफियाओं के आगे सब व्यर्थ नजर आते हैं। गौरतलब है कि अब तक जिन बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक हुए हैं उनका उत्तर प्रदेश और बिहार से संबंध रहा है।

सवाल है कि क्या हमारे देश की प्रतियोगी परीक्षाएं शिक्षा माफियाओं के रहमों-करम पर निर्भर रहेंगी। यकीनन उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रश्नपत्र लीक कराने वाले ऐसे विशेषज्ञों की फौज खड़ी हो चुकी है, जो लोगों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही नहीं करते, बल्कि प्रकारांतर से सुरक्षा-व्यवस्था को खुली चुनौती दे रहे हैं। प्रश्न है कि बेहद चौकसी और गोपनीयता के बावजूद प्रश्नपत्र लीक होने की घटना अनवरत जारी है। बीएसएफ रेडियो आॅपरेटर की देशव्यापी परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हो गया। नकल कराने वाले गिरोह में अद्यतन तकनीकी वाट्सप के जरिए प्रश्नपत्र के उत्तर को खरीदारोें तक पहुंचाने की फुल प्रूफ योजना को संचालित किया। इस घटना का दूसरा पहलू प्रश्नपत्रों की छपाई के संदर्भ में है। जिस कंपनी को प्रश्नपत्र छापने का ठेका दिया गया था वह जांच एजेंसी को अपने घोषित पते से गायब मिली।

जाहिर है कि प्रश्नपत्र छपने से पहले उसको लीक कराने की पूरी व्यूह रचना कर ली गई थी। पर क्या यह माना नहीं जा सकता कि नकल माफिया अब देश की सुरक्षा-व्यवस्था से जुड़ी प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्नपत्रों को लीक कर राष्ट्रद्रोह सरीखा अपराध कर रहे हैं। सीमा सुरक्षा बल के रेडियो आॅपरेटर का पद काफी संवेदनशील होता है। युद्ध के समय इसकी महत्ता ऐसी है कि किसी देश की संचार-व्यवस्था को ध्वस्त करने मात्र से हारी हुई बाजी को जीत में बदला जा सकता है। आखिर जो पथभ्रष्ट नौजवान प्रश्नपत्र का उत्तर खरीद कर पैसे के बल से संवेदनशील पद हासिल करता, यकीनन उसे देश की अस्तित्व के साथ खिलवाड़ करने में जरा भी शर्म नहीं आती।

प्रतियोगी परीक्षाएं महज सुनहरे भविष्य और सुरचित नौकरी के लिए आयोजित नहीं की जातीं। यह तो एक माध्यम है जिसके सहारे देश के प्रतिभावानों की खोज की जाती है। ताकि राष्ट्र निर्माण में उनकी बेशकीमती ऊर्जा का सदुपयोग किया जा सके। अभिभावकों को भी यह समझने की आवश्यकता है कि अपने लाड़ले का भविष्य सुरक्षित करने के लिए धृतराष्ट्र मोह का परित्याग करने में भलाई है।

अगर यह मान लिया जाए कि सरकारी नौकरी के प्रति आकर्षण और उसको येनकेन प्रकारेण प्राप्त करने की प्रवृत्ति ने नकल माफियाओं के लिए भानुमति का पिटारा खोल दिया है तो कानून को बेहद कड़ा करना होगा। बाबा आदम के जमाने वाले कानून से नकल विहीन प्रतियोगी परीक्षा का सपना पूरा होने वाला नहीं है। नकल माफियाओं के दिल में कानून का खौफ खड़ा करना आज की बड़ी आवश्यकता है।

धर्मेंद्र कुमार दूबे, वाराणसी

 

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