जनसत्ता 26 सितंबर, 2014: जिन बालक और बालिकाओं की खेलने-कूदने और पढ़ने की उम्र होती है, उस उम्र में, परंपरा कहें या मां-बाप का उलटा सोच, उन्हें ऐसे बंधन में बांध दिया जाता है जिसकी उन्हें समझ तक नहीं होती। बाल-विवाह रोकने के लिए चाहे आज कितने भी कानून हों, शादी के लिए सही उम्र की सीमा भले तय कर दी गई है लेकिन पुरानी मान्यताओं-परंपराओं की बेड़ियों में जकड़े माता-पिता इसे नहीं मानते। इसलिए देश के अनेक भागों में बाल-विवाह आज भी बदस्तूर जारी हैं। इन विवाहों को लेकर कभी-कभार खबरें भी आती हैं और फिर लंबी चुप्पी!

कम उम्र में शादी होने के कारण किशोर-किशोरियों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। खासतौर पर लड़कियों को और भी भयंकर त्रासदियों से गुजरना पड़ता है। शिक्षा से वंचित बच्चियों का जीवन बहुत कठिन हो जाता है। वे आगे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पातीं। बाल विवाह की समस्या राजस्थान, झारखंड, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और मेघालय में ज्यादा है। कानून के मुताबिक विवाह के लिए लड़की की उम्र अठारह और लड़के की इक्कीस साल निर्धारित है। यदि लड़के-लड़की की शादी कम उम्र में कर दी जाती है तो इससे उनके शारीरिक और मानसिक विकास में भी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। छोटी उम्र में शादी हो जाने से बच्चे घर-परिवार की समस्याओं में उलझ जाते हैं।

बाल विवाह एक अपराध है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक होकर इस इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। बौद्धिक और सांस्कृतिक-मानसिक रूप से सामाजिक परिवर्तन लाकर ऐसी तमाम बुराइयों को दूर किया जाए।

उर्वशी गौड़, भजनपुरा, दिल्ली

 

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