जनसत्ता 22 सितंबर, 2014: केसी बब्बर की टिप्पणी ‘अंधविश्वास का भंवर’ (दुनिया मेरे आगे, 10 सितंबर) में अंधकार के भंवर को और अधिक गहराते जाने की जो तस्वीर सामने रखी गई है उसका निदान लंबी और दूरगामी तैयारी की मांग करता है। एक लोकतांत्रिक, समतावादी, धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक चेतना से युक्त समाज ही इस तरह के अंधेरों से दूर रह सकता है। ऐसे समाज को गढ़ने का संकल्प भारतीय संविधान की उद्देशिका में स्पष्ट रूप से दिया गया है। लेकिन केवल संविधान में लिख देने मात्र से ऐसा समाज अपने आप नहीं बन जाता।
स्पष्ट और प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में नए सामाजिक मूल्यों की रचना की ही नहीं जा सकती। पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद किसी बड़े राजनेता ने इस दिशा में समुचित प्रयास नहीं किए। केरल में जरूर केरल शास्त्र साहित्य परिषद ने एक समय में जन विज्ञान आंदोलन को प्रभावी ढंग से चलाया। सुविख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल, जयंत नार्लीकर, माधव गाडगिल, अनिल सदगोपाल, विनोद रायना सहित अनेक लोगों ने अपने-अपने स्तर पर कुछ संस्थाओं और आंदोलनों के जरिए वैज्ञानिक चेतना विकसित और प्रसारित करने के प्रयास किए।
दिल्ली साइंस फोरम, पश्चिम बंग विज्ञान मंच, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, अंधश्रद्धा निवारण अभियान, जन स्वास्थ्य अभियान सहित कुछ संगठन आज भी वैज्ञानिक चेतना के विकास का काम अपने-अपने स्तर पर कर रहे हैं। एक समय दूरदर्शन ने भी ‘टर्निंग प्वाइंट’ सरीखे कार्यक्रम के जरिए इस दिशा में योगदान किया था। सूर्य ग्रहण के अवसरों पर प्रोफेसर यशपाल सरीखे वैज्ञानिकों ने अंधविश्वास के खिलाफ चेतना जगाने के प्रयास किए थे।
अनिल सदगोपाल के नेतृत्व में दिल्ली विश्वविद्यालय के विज्ञान के प्राध्यापकों, टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ फंडामेंटल रिसर्च मुंबई, आइआइटी के वैज्ञानिकों, मध्यप्रदेश के महाविद्यालयों के प्राध्यापकों और स्वैच्छिक संस्थाओं के सहयोग से होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम विकसित कर मध्यप्रदेश शासन के साथ मिल कर होशंगाबाद जिले के लगभग दो सौ पचास मिडिल स्कूलों में वर्षों तक चला कर बताया था।
विज्ञान शिक्षण का यह कार्यक्रम रटने के स्थान पर प्रयोग करके खेल-खेल में विज्ञान सीखने का तरीका था, जिसमें छात्र प्रयोग करके अपने अवलोकनों पर चर्चा करके, प्रश्न करके, बहस करके जानकारियां एकत्रित करके निष्कर्ष पर पहुंचते थे। यह कार्यक्रम छात्रों में जिज्ञासा पैदा करके नए-नए प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करता। इस तरह के विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम वैज्ञानिक चेतना विकसित कर अंधविश्वास को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
अंधविश्वासों में डूबा समाज शासक वर्ग को बहुत मुफीद है इसलिए वह तो प्रयास करने से रहा। पर ऊपर वर्णित सज्जनों, संस्थाओं और आंदोलनों की संगठित ऊर्जा और प्रयास जरूर प्रेरणा दे सकते हैं।
श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta