कोई भी देश जो विकसित होने का दावा करे या फिर विकासशील होने का, उसमें मजदूर वर्ग अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। इस लिहाज से देखें तो आज भारत के विकासशील देश होने में मजदूर वर्ग की भूमिका को दरकिनार नहीं किया जा सकता। किसी भी देश की आर्थिक गतिविधियों के सुचारु रूप से परिचालन में मजदूर वर्ग का विशेष योगदान रहता है या फिर यों कहें कि देश की आर्थिक उन्नति मजदूर वर्ग के कंधों पर टिकी है। आज के अंध-आधुनिकीकरण के दौर में सब कुछ मशीनों पर निर्भर होने के बावजूद मजदूर वर्ग का महत्त्व कम नहीं हुआ हैं। अर्थव्यवस्था के बुनियादी ढांचे यानी उद्योग-धंधों, व्यापार-जगत, कृषि-उत्पादन और निमार्णात्मक क्रियाकलाप में मजदूर श्रम की भूमिका सर्वाधिक रहती है।

फिलहाल देश में मजदूर वर्ग की दो श्रेणियां प्रचलन में हैं। एक श्रेणी संगठित है, तो दूसरी असंगठित। संगठित क्षेत्र के मजदूर को न केवल पर्याप्त मजदूरी प्राप्त होती है, बल्कि उसकी सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती है। संगठित क्षेत्र के मजदूरों को मासिक वेतन, महंगाई भत्ता, पेंशन और अन्य जरूरी सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई जाती हैं। वहीं असंगठित क्षेत्र की बात करें तो लोगों को काफी कम मजदूरी पर काम करना पड़ता है। किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी नहीं दी जाती है और इसके असंगठित होने के कारण जीवन-यापन पूरी तरह दैनिक मजदूरी पर आधारित होता है। ऐसे में असंगठित मजदूर वर्ग दूसरों पर अधिक निर्भर होता है। अक अनुमान के मुताबिक देश में असंगठित मजदूरों की तादाद लगभग नब्बे फीसदी के इर्द-गिर्द होगी ।

मौजूदा महामारी के संक्रमण के दौर में मजदूर वर्ग को कई प्रकार की दुश्वारियों से दो-चार होना पड़ा है। आज देश की बड़ी आबादी दैनिक मजदूरी से जीवन का गुजारा करती हैं। मौजूदा वक्त में उद्योग-धंधों के शिथिल होने से इनका जीवन निर्वाह दुभर हो गया हैं। ऐसे में इनके जीवन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। भारत देश के विकास में मजदूर वर्ग की भागीदारी को बिल्कुल कम नहीं आंका जा सकता। जहां मजदूर वर्ग में समाज का बहुत बड़ा तबका शामिल है, वहीं हस्तशिल्पी, सफाई कर्मचारी, बढ़ई, लोहार, पशुपालक और आम आदमी जो दैनिक मजदूरी से जीवन निर्वाह करता है, वह भी मजदूर ही है। इसके इतर सूती वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, सीमेंट उद्योग, लोहा और इस्पात उद्योग और कोयला खदानों में होने वाले क्रियाकलाप में मजदूर वर्ग का योगदान अतुलनीय है।

देश में मजदूर से एक दिन में अधिकतम आठ घंटे ही काम करवाया जा सकता है। फिर न्यूनतम मजदूरी से संबंधित कानून भी बने हुए हैं। लेकिन इन कानूनों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा, जिसे रोका जाना निहायत जरूरी है। मजदूर अपने पसीने से देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका का निर्वहन करता है। बिना मजदूर वर्ग के किसी भी देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत बनाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आज भारत की जनसांख्यिकी दुनिया की दूसरी सर्वाधिक है, ऐसे में यहां मजदूरों की उपलब्धता सहज है। अगर देश की आबादी को सही राह और रोजगार के मार्ग पर चलने की ओर बढ़ाया जाए तो यह देश के आर्थिक ढांचे का सकारात्मक कायापलट कर सकती है।
’अली खान, जैसलमेर, राजस्थान</p>