हाल ही में एक खबर ने हम अभिभावकों को कुछ सोचने को मजबूर कर दिया। मुंबई की एक बहुमंजिला इमारत में आग लग गई, चारो तरफ अफरातफरी का माहौल था, लेकिन इस परिस्थिति में दस वर्ष की मासूम जेन ने धीरज के साथ उसका सामना किया। उसे अपने स्कूल में सिखाए सुरक्षात्मक तरीके याद थे, जिसकी वजह से उसने कई लोगों को जान बचाने में मदद की। भारत मे जो भी आग लगने की घटनाएं होती हैं, उनमें अधिकतर लोग अपनी जान आग में जलने के बजाय दम घुटने की वजह से गंवाते हैं। कारण है शरीर मे कार्बन मोनोऑक्साइड का चला जाना, जिसकी वजह से दम घुटने से उनकी मौत हो जाती हैं। इस स्थिति से बचा जा सकता है, जब व्यक्ति को आपदा से निपटने का उपाय पता हो।

पर अफसोस की बात है कि हमारे देश मे आपदा प्रबंधन की शिक्षा नहीं दी जाती। घर से लेकर स्कूल और कॉलेज तक इस दिशा में गंभीर नहीं हैं और न ही सरकार ने इस दिशा में कोई विशेष प्रयास किए हैं। बच्चों को शिक्षित करना ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं होता, बल्कि उन्हें जागरूक करना भी शिक्षा का एक अहम ध्येय है। छोटे से छोटे स्कूल में भी आज बच्चों को डाल दीजिए, वहां उन्हें प्रोजेक्ट बनाने, नृत्य और गीत सिखाए जाते हैं, लेकिन जो चीज वाकई जरूरत की है, वे नहीं सिखाते हैं। आपदाएं कभी किसी को बता कर नहीं आतीं। विषम परिस्थितियों में भी धैर्य कैसे बनाए रखें, खुद की और लोगो की रक्षा कैसे करे, ये आपदा प्रबंधन के गुर सीख कर ही किया जा सकता है। इसलिए इसे सरकारी या प्राइवेट, सभी स्कूलों में अनिवार्य कर देना चाहिए।

शिल्पा जैन सुराणा, वारंगल, तेलंगाना