हर साल आठ मार्च को पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाता है। सर्वविदित है कि महिलाओं के उत्थान के बिना देश का विकास संभव नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़े। हाल ही में महिला जनप्रतिनिधियों के प्रथम राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत अनेक दिग्गजों ने एकमत से सभी राजनीतिक दलों से महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने में सहयोग करने की वकालत की थी। गौरतलब है कि वर्तमान में संसद में बारह फीसद, विधानसभाओं में नौ फीसद और विधान-परिषदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र छह फीसद है। राजनीतिक हिस्सेदारी बढ़ने से अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना दिखती है।
समझा जा सकता है कि विकसित देशों की श्रेणी में भारत को खड़ा करने का एक पक्ष महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढ़ानी है। किसी भी समय, समाज और परिस्थिति में महिलाओं के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है। मानव सभ्यता के हरेक युग में महिलाओं ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की है। प्रेम, वात्सल्य और समर्पण से परिपूर्ण स्त्रियां, समाज को अपनी ऊर्जा से नया स्वरूप देने की क्षमता रखती हैं। स्वस्थ, शिक्षित और बदलते वक्त के साथ सामंजस्य स्थापित कर आज वे पुरुषों के परंपरागत वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं। आज हर क्षेत्र में महिलाएं सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।
न जाने वे लोग किस मिट्टी से बने हैं, जो एक तरफ नारी सशक्तीकरण की लंबी-चौड़ी बातें करते हैं, तो दूसरी तरफ, मौका मिलते ही महिलाओं पर आपराधिक, घरेलू और सामाजिक हिंसा करने से बाज नहीं आते! आज देश के पिछड़ेपन का एक अहम कारण, स्त्रियों को समाज में उचित स्थान न मिल पाना है। महिलाएं अगर सबल होंगी तो आने वाली कई पीढ़ियां सबल, शिक्षित और आत्मनिर्भर बन पाएंगी। लैंगिग समानता आज भी वैश्विक समाज के लिए एक चुनौती है। घटता लिंगानुपात, न्यून साक्षरता दर, ग्रामीण महिलाओं में स्वास्थ्य की दुर्दशा आदि ऐसे संकेतक हैं, जो हमारे समाज में स्त्रियों की स्थिति को दर्शाते हैं।
आज भी अधिकतर भारतीय घरों में लड़कियों के साथ लैंगिग आधार पर भेदभाव किया जाता है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र ने इस बाबत आशा जाहिर की है कि अगले अस्सी वर्षों में इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा। लेकिन इसकी शुरुआत हर घर से होनी चाहिए। अगर हर घर में बेटियों का पालन बेटों के बराबर हो और उन्हें आगे बढ़ने के लिए एक खुला आसमान दिया जाए तो हमारी बेटियों द्वारा नित नए इतिहास रचे जाएंगे।
’सुधीर कुमार, बीएचयू, वाराणसी
चौपालः बेटियों का आसमान
हर साल आठ मार्च को पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाता है। सर्वविदित है कि महिलाओं के उत्थान के बिना देश का विकास संभव नहीं है।
Written by जनसत्ता

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First published on: 08-03-2016 at 03:12 IST