कोरोना महामारी जिस रफ्तार से अपना पांव पसार रही है, उसमें सबसे बड़ी चुनौती खाद्य संकट की आने वाली है। भारत की बड़ी जनसंख्या तक खाद्य की उपलब्धता सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। कोरोना की रोकथाम के लिए लागू पूर्णबंदी के दौरान बड़ी संख्या में लोगों ने नौकरी गई और उनके सामने आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया।

ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार के सामने बड़ी चुनोती है कि वह बेरोजगारी और रोजी-रोटी छिन जाने की वजह से भुखमरी का सामना कर रहे लोगों तक खाद्य पहुंचाए। विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक खाद्य की मांग में साठ प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी जो भुखमरी की समस्या को जन्म दे सकता है। निरंतर प्राकृतिक आपदा भी खाद्य सुरक्षा के लिए समस्या बन सकती है।

शुरुआती दौर में सरकार ने जिस तरह जिम्मेदारी ली थी, अब वह उससे धीरे-धीरे अपना हाथ वापस खींच रही है और औपचारिक रूप में अपना भूमिका निभा रही है। जबकि वह सक्रियता अभी भी जरूरी है जो पहले थी। दूसरी ओर, संकट की घड़ी में अन्य मोर्चों पर भी सरकार की योजनाओं की पोल खुल गई है। प्रधानमंत्री पोषण अभियान, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना या कोई भी ऐसी योजना अपने मानक पर खरी नहीं उतर पा रही है।

लंबे समय तक चली पूर्णबंदी कुछ छूट के बावजूद अभी सामान्य नहीं हुई है। कई राज्यों में अभी भी पूर्णबंदी लागू है। इस दौरान प्रवासी मजदूर अपने घर लौट चुके हैं, वर्तमान में उनके पास आय का कोई साधन नहीं हैं। उनके सामने पोषण एक बड़ी समस्या है। एक मनरेगा है, लेकिन उसका भी कुशल संचालन नहीं हो पा रहा है। सबसे प्रभावित क्षेत्र है बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश जैसे राज्य। इसलिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को चाहिए कि खाद्य की समस्या का समाधान हर हाल में हो।
’साक्षी यादव, पटना

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