हाल में मुंबई पुलिस ने टीवी चैनलों की टीआरपी के फजीवाड़े का जो खुलासा किया है, वह चौंकाने वाला है। दुनिया को सच और हकीकत दिखाने का दावा करने वाले चैनल खुद किस झूठ की बुनियाद पर कारोबार कर रहे हैं और जनता को मूर्ख बना रहे हैं, इसका पदार्फाश हो गया है। पुलिस का दावा है कि हर महीने पैसे देकर किसी खास चैनल को देखने के लिए ऐसे लोगों को उत्प्रेरित किया गया जो इस बात से भी अनजान थे कि उनके यहां टीआरपी मापने का मीटर भी लगा है। चैनलों का यह खेल जनता को अंधकार में रखने सरीखा है।

यह लोगों के साथ सरासर धोखाधड़ी है, अन्याय है। अब तो चैनल आपस में भी लड़ने लगे हैं और एक दूसरे की कड़ी आलोचना करने लगे हैं। चैनलों पर बहस के दौरान हाथापाई और तू-तड़ाक की भाषा आम हो गई है। और चैनल वाले इसका इस्तेमाल टीआरपी बढ़ाने के लिए कर रहे हैं।

इसी टीआरपी के आधार पर उन्हें विज्ञापन मिलते हैं। लेकिन झूठ और फरेब के आधार पर क्या इस काम को जायज ठहराया जा सकता है? ऐसे चैनल मालिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
’एफएन प्रधान, लखनऊ</p>