आंकड़ों की बाजीगरी में चाहे कितनी ही प्रगति के दावे किए जाते हों, लेकिन विकृत मानसिकता के कारक तत्त्वों पर अंकुश लगाने के प्रयासों की आवश्यकता समझी ही नहीं गई है। तकनीकी विकास के साथ-साथ नैतिकता को ताक पर रखते हुए चारित्रिक पतन के गर्त में कब, कहां और कौन जा रहा है, इस पर परिजन भी नजर नहीं रख पा रहे हैं।
आधुनिकता की अंधी होड़ में हमारे उच्चस्तरीय नैतिक संस्कारों का विलोपन गहन चिंता का विषय है। आए दिन होने वाली हैरतअंगेज अमानवीय घटनाओं के मूल में कामवासना प्रमुख कारण रही है। ऐसे में यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि सामाजिक चिंतन की दशा और दिशा को सुनिश्चित आकार देते हुए ऐसे कदम उठाए जाएं, जिससे कि स्वस्थ समाज की रचना हो सके।
संगीन अपराधों के दोषी तत्त्वों को राजनीतिक संरक्षण, संचार तंत्र में परोसी जा रही अश्लीलता तथा कानून और व्यवस्था का मखौल उड़ाती मानसिकता के चलते नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। नीति निमार्ता अपनी राजनीतिक जमावट में तल्लीन हैं और कानून और व्यवस्था के पालनहार परिवार के आर्थिक विकास में मशगूल हैं। अगर ऐसा नहीं है तो क्यों नहीं राजनीति में उच्च स्तरीय आदर्श स्थापित किए जाकर स्वस्थ समाज की संरचना के प्रति प्रशासन तंत्र को जवाबदार ठहराया जाता।
शासन-प्रशासन अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग जिम्मेदारियों का निर्वहन करें, लेकिन तमाम जिम्मेदारियों के निर्वहन का सार तत्त्व स्वस्थ समाज की संरचना में ही अंतर्निहित माना जाना चाहिए।
समय रहते ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए, जिससे व्यक्तियों के आचार-विचार और व्यवहार में सकारात्मक सोच लाते हुए उन्हें उच्च स्तरीय संस्कारों से परिपूर्ण किया जाए। अन्यथा समाज में दिनोंदिन नैतिकता का पतन आने वाले समय में हमारी संस्कृति को विलुप्त कर देगा। इसके साथ साथ संयुक्त परिवार की अवधारणाओं को बढ़ावा देना भी वर्तमान सामाजिक परिवेश में आवश्यक प्रतीत होता है। हमारी शिक्षा नीति पर भी काफी हद तक पुनर्विचार की आवश्यकता है।
निश्चित रूप से समाज के बीच से आ रहे नकारात्मक संदेशों को लेकर हमें सचेत हो जाना चाहिए। अन्यथा भावी पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। समय रहते सकारात्मक सोच के साथ नैतिक मूल्यों के उत्थान की दिशा में हमें जुटने की जरूरत है।
’राजेंद्र बज, हाटपीपल्या, देवास, मप्र