‘मौत के अस्पताल’ (संपादकीय, 11 अगस्त) पढ़ कर ऐसा लग रहा है मानो स्वास्थ्य से जुड़े महकमे और प्रशासन को ही नियम-कायदों की कोई परवाह नहीं है। ऐसे में भला आम आदमी से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे इसके प्रति संजीदा व्यवहार करें। जो प्रशासन सामान्य लोगों के लिए स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देश जारी करता है, आखिर वही इतनी बड़ी लापरवाही कैसे करता है? अग्निशमन विभाग द्वारा बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किए किसी होटल को कैसे कोविड-19 सेंटर बना दिया गया?

क्या मरीजों की बढ़ती संख्या के दबाव में आनन-फानन में मानकों का उल्लंघन कर कहीं भी इस तरह के केंद्र बनाने की अनुमति दी जा सकती है? यह तो इलाज के नाम पर खानापूर्ति और मरीजों की जान जोखिम में डालने वाली बात हुई! ऐसी खानापूर्ति के गंभीर परिणाम अमदाबाद और विजयवाड़ा में देखने को मिले।

सरकार और संबंधित महकमों का इससे अफसोसनाक रवैया और क्या हो सकता है कि बार-बार इस तरह के हादसे हो रहे हैं, फिर बाकी जगहों पर उन हादसों से सबक लेकर सुरक्षा इंतजाम सुनिश्चित नहीं किए जा रहे हैं। आखिर इसके पीछे क्या कारण है कि लोगों को या तो बीमारी से या फिर हादसों के जोखिम में मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है!

इस दौरान आमजन ऐसे ही भयभीत है। इन परिस्थितियों में अगर कोई कोरोना की चपेट में आ जाता है तो उसकी हालत क्या होती होगी, यह समझना मुश्किल नहीं है। इस तरह की दुर्घटनाएं मरीजों में दोहरा भय पैदा करेंगी।

’मुकेश कुमार मनन, पटना, बिहार