चुनाव आते ही ईवीएम पर अंतहीन तकरार शुरू हो चुकी है जो चुनाव नतीजे आने के बाद पूरे उबाल पर रहेगी। जो भी विपक्षी पार्टी हारेगी वह अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ेगी। यह सब तो तब है जबकि प्रत्याशी और पार्टियां ईवीएम से चुनाव कराए जाने पर सहमति दे चुकी हैं। अनेक अवसरों पर भारतीय निर्वाचन आयोग ने गड़बड़ियों के सबूत और ईवीएम ‘हैक’ किए जाने की प्रक्रिया प्रस्तुत करने की चुनौती दी है लेकिन मजे की बात है कि आरोप लगाने वाला कोई भी योद्धा इसे स्वीकार नहीं कर सका है।
ऐसा नहीं है कि मतदान में गड़बड़ी के आरोप ईवीएम आने के बाद ही लगे हैं। मतपत्र से चुनाव होने पर भी हमेशा चुनावी धांधलियों के आरोप सत्ताधारी दल पर लगते रहे हैं। यानी हार जाने पर अपनी खीज मिटाने के लिए खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोचने की बजाए ईवीएम को कोसने की प्रवृत्ति स्थायी रूप ले चुकी है। खाने के लिए दोनों हाथों में रखे लड्डू विपरीत समय आने पर वार साधने के काम आते हैं। निर्वाचन आयोग और सर्वोच्च न्यायालय तक ने कह रखा है कि ईवीएम से बेहतर अन्य कोई चुनावी प्रक्रिया नहीं, तब भी जनता को बरगलाने-फुसलाने वाले तत्त्व अनावश्यक विवाद खड़ा करने से परहेज नहीं कर रहे। अगर इन्हें ईवीएम पर विश्वास नहीं है तो नामांकन भरते समय इस पर सहमति प्रकट क्यों करते हैं?
गौरतलब है कि भारत में जितने चुनाव-सुधार हुए हैं, अन्यत्र कहीं भी नहीं हुए। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने अपने कार्यकाल में विभिन्न चरणों में चुनाव करा करबूथ कैप्चरिंग, मतपेटियों की खुलेआम लूट और चुनावी हिंसा पर लगाम लगाई थी। तब भी अनेक दलों और नेताओं के पेट में मरोड़ उठी थी। अब ईवीएम के जरिए पारदर्शी व निष्पक्ष चुनाव हो रहे हैं तो इसका स्वागत होना चाहिए और विभिन्न दलों को इसमें रचनात्मक सहयोग देना चाहिए।
’सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी, नई दिल्ली</strong>