बुधवार को राज्यसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने माताओं और बच्चों के कुपोषण पर पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए बताया कि करीब पंद्रह मंत्रालय इस समस्या से निपटने के लिए एकजुट होकर काम कर रहे हैं। इसके साथ ही आंगनवाड़ी को और सशक्त करने के लिए बजट में इजाफा किया गया है। यह बजट लगभग 19000 करोड़ का है और पूरक पोषण के लिए 8000 करोड़ से ज्यादा मौजूदा वित्त वर्ष में दिए जा चुके हैं। हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कुपोषण में कमी आई है लेकिन अब भी 19 करोड़ 44 लाख लोग कुपोषित हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुल्क को आजाद हुए सत्तर साल से ज्यादा बीत गए मगर देशवासी अब भी भुखमरी, कुपोषण, गरीबी से लड़ रहे हैं। सरकार इन समस्याओं से निपटने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करती है लेकिन बढ़ती आबादी और भ्रष्टाचार के चलते इन दिशा में अपेक्षित प्रगति नहीं हो रही है।
इसके मद्देनजर कुपोषण से निपटने की सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन मुस्तैदी से होना चाहिए। लचर रणनीति के चलते अनेक क्षेत्रों में ये योजनाए पहुंच ही नहीं पातीं। नतीजतन, अभी भी कई राज्यों में हालात जस के तस हैं। विशेष तौर पर आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषित माताएं और बालक अधिक संख्या में पाए जाते हैं। गौरतलब है कि किसी व्यक्ति को कुपोषण इस वजह से नहीं होता कि उसे भरपेट भोजन नहीं मिल पाता बल्कि उसके आहार में पोषक तत्त्वों की भारी कमी होती है। इससे शरीर बहुत कमजोर हो जाता है।
कमजोरी और खून की कमी के चलते माताओं की प्रसव के समय मौत भी हो जाती है। अनेक बच्चों की पांच वर्ष की उम्र से पूर्व ही मृत्यु हो जाती है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को कुपोषण से लड़ने के लिए आपसी सहयोग से एक सटीक रणनीति बनानी चाहिए। आंगनवाड़ी कर्मियों को जरूरी प्रशिक्षण मुहैया कराया जाए ताकि वे माताओं और बच्चों की पोषण से जुड़ी समस्याओं का निदान करने में सक्षम हो जाएं और देश को कुपोषण से जल्दी मुक्ति मिल जाए।
’निशांत महेश त्रिपाठी, ग्राम कोंढाली, नागपुर</p>